२१२२ ११२२ ११२२ २२
मैं तो दीवाना हूँ मुझको न जलाओ ऐसे
मेरे ख़त आज हवा में न उड़ाओ ऐसे
चांदनी रात में ऐ चाँद यूं छत पे आकर
मेरे सोये हुए अरमाँ न जगाओ ऐसे
रेत पे जैसे निशाँ क़दमों के बैसे ही सही
दिल से धुंधली मेरी यादें न मिटाओ ऐसे
अब्र-ए- जुल्फ में खुद को यूं छुपा लेते हो
मैं तड़प जाता हूँ मुझको न सताओ ऐसे
तुम समंदर ए गुहर हो ये सभी को है पता
पर न आँखों के गुहर अपने लुटाओ ऐसे
बिन बुलाये मैं तेरी बज्म में आया माना
अजनबी हूँ न जमाने को जताओ ऐसे
रात इक ख्वाब ने सोने न दिया है मुझको
बस अभी सोया हूँ मुझको न जगाओ ऐसे
दिल धडकते हैं कई देख तुम्हे महफ़िल में
लोग जल जाते हैं मुझको न बुलाओ ऐसे
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर जी ..आपकी प्रतिक्रियाओं से मुझे हमेशा ही कुछ न सीखने को मिलता है ..अपनी रचनाओं पर हमेशा ही आपकी प्रतिक्रियाओं का मैं इंतज़ार करता हूँ एवं अन्य रचनाकारों की रचनाओं पर भी आपकी प्रतिक्रियाओं से भी सतत कुछ न कुछ सीख रहा हूँ ..आपके सुझाव बहुत बढ़िया हैं ..मैं इस ग़ज़ल में संशोधन कर लूँगा ..आप का स्नेह और मार्गदर्शन सतत मिलता रहे इसी कामना के साथ सादर
आदरणीय मिथिलेश जी ..आपकी प्रतिक्रिया से मैं बहुत उत्साहित महसूस कर रहा हूँ काफी दिनों गुनगुनाने के बाद ही ये ग़ज़ल पोस्ट की थी ..ईता दोष के सम्बन्ध में बिद्वत जनों की प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहा हूँ ..आपने बढ़िया मशविरा दिया है ..मार्गदर्शन और हौसला अफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर
आदरणीय मनोज जी ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद ..आपका सुझाव अच्छा है अभी इस पर बिद्वत जनो के मशविर का इंतज़ार कर रहा हूँ / सादर
आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी इस बज़्म-ए-सुखन को एक बहतरीन इंतेखाब से नवाज़ा है ..हर शेर अपने में पूरे खयालात समेटे हुए है...."
बिन बुलाये मैं तेरी बज्म में आया माना
अजनबी हूँ न जमाने को जताओ ऐसे
रात इक ख्वाब ने सोने न दिया है मुझको
बस अभी सोया हूँ मुझको न जगाओ ऐसे"..क्या बात है ...दिली दाद वसूल पाइयेगा !!!
बिन बुलाये मैं तेरी बज्म में आया माना
अजनबी हूँ न जमाने को जताओ ऐसे
बेहतरीन सर! तहेदिल से गज़ल पर ढ़ेरों दाद प्रेषित हैं!
आदरणीया आशुतोष जी, बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है, पूरी ग़ज़ल कई बार गुनगुनाई और झूम गया. इस रसीली ग़ज़ल ने मुग्ध कर दिया. इस बेहतरीन ग़ज़ल के एक एक शेर पर दिल से दाद दे रहा हूँ. इस मुहब्बत की ग़ज़ल से सच में मुहब्बत हो गई. आपको बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर. आपकी शानदार ग़ज़लों में से एक ग़ज़ल हो गई है. वाह वाह वाह
मतला में शायद ईता दोष की सम्भावना है इसलिए कुछ इस तरह या इससे बेहतर जैसे भी मगर मतले में एक छोटे से संशोधन की आवश्यता होगी. यदि दोष नहीं है तो बहुत बढ़िया.... थोड़ा गुणीजनों की इस्लाह की प्रतीक्षा कीजियेगा.
मैं तो दीवाना हूँ यूं कहर न ढाओ ऐसे
मेरे ख़त आज हवा में न उड़ाओ ऐसे
बहरहाल इस शानदार, जानदार, मजेदार, रसदार और लाज़वाब ग़ज़ल पर बहुत बहुत दाद और दुआएं ....
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