मजहब जिसने इंसानों को आपस में जोड़ा है
आज उसी मजहब ने क्यूँ दिल इंसा का तोडा है
कितनी सुंदर धरती है ये कितने सुंदर मंजर
पर राहों में उल्फत की क्यूँ नफरत का रोड़ा है
जिन की ख्वाइश धन दौलत दुनिया भर की हथिया लें
गर समझें तो आज समझ लें ये जीवन थोडा है
राम नाम जिस पाहन पर वो सागर में उतराए
डूब गया वो राम नाम के बिन जिसको छोड़ा है
तब तक चैन कहाँ पाया है इस इंसा ने जग में
जब तक होकर बेलगाम दौड़ा मन का घोडा है
बड़े बड़े दिग्गजों शूरमा के तुम नाम गिनाते
एक बता दो वक़्त की जिसने धारा को मोड़ा है
मौलिक व अप्रकाशित
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कितनी सुंदर धरती है ये कितने सुंदर मंजर
पर राहों में उल्फत की क्यूँ नफरत का रोड़ा है
जिन की ख्वाइश धन दौलत दुनिया भर की हथिया लें
गर समझें तो आज समझ लें ये जीवन थोडा है ...बेहद उम्दा...बहुत बधाई
// एक बता दो वक़्त की जिसने धारा को मोड़ा है // , वाह , वाह , बढ़िया ग़ज़ल हुई है , बधाई आदरणीय..
अच्छी गज़ल के लिए बधाई।
आदरणीय मिथिलेश जी शंका के निवारण के लिए धन्यवाद ..सादर
आदरणीय जवाहर जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल आभार सादर
आदरणीय मिथिलेश जी ..रचना आपको पसंद आये मेरा प्रयास सार्थक हुआ ..काफिया का टोटा ..उर्दू हिंदी में लिखने वाला मामला है या और कुछ ..हार्दिक धन्यवाद के साथ सादर
आदरणीय पारी जी .रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से मैं उत्साहित महसूस कर रहा हूँ सादर
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