(१)
विधान लोनी का जन्म 26 जनवरी 1950 को बनारस के जिला अस्पताल में हुआ था। उसके पिता निधान लोनी विश्वनाथ मंदिर के पास चाय बेचा करते थे। लोग कहते हैं कि विधान लोनी में उस लोदी वंश का डीएनए है जिसने उत्तर भारत और पंजाब के आसपास के इलाकों में सन 1451 से 1526 तक राज किया था। जब बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराकर भारत में मुगलवंश की स्थापना की तब इब्राहिम लोदी का एक वंशज बनारस भाग आया और मुगलों को धोखा देने के लिए लोदी से लोनी बनकर हिन्दुओं के बीच हिन्दुओं की तरह रहने लगा।
विधान लोनी का बचपन विश्वनाथ मंदिर के आसपास ही बीता। अपने घरवालों और पड़ोसियों की देखा देखी वो भी भोलेनाथ का परमभक्त बन गया। विधान बचपन से ही बड़ा कल्पनाशील था। पढ़ने लिखने में तो उसका मन ज्यादा नहीं रमता था लेकिन वाद विवाद में उसे बड़ा मज़ा आता था। सिंहासन बत्तीसी, बैताल पच्चीसी, किस्सा-ए-तोता मैना, किस्सा-ए-हातिमताई आदि किताबें जो विश्वानाथ मंदिर के आसपास फुटपाथ पर बैठने वाले लोग बेचा करते थे उन्हें पढ़ने के बाद उन्हीं कहानियों में थोड़ा फेरबदल करके वो अपने दोस्तों को सुनाया करता। धीरे धीरे वो अपने मन से भूत प्रेतों की कहानियाँ गढ़कर अपने दोस्तों को सुनाने लगा। उसके सुनाने का अंदाज़ इतना अनूठा था कि उसके दोस्तों की डर के मारे सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती थी और वो समझते थे कि ये घटना विधान के साथ सचमुच घटी है।
एक दिन विधान अपने घर से थोड़ी दूर पर स्थित बनारसी साड़ियों की एक बड़ी दूकान पर चाय देकर आ रहा था कि एक साइकल वाले ने पीछे से उसे टक्कर मार दी। उसके हाथ से गिलास रखने की जाली छूटकर गिर गई और सारे गिलास टूट गये। घर पहुँचने पर उसके पिता ने यह कहकर उसकी पिटाई कर दी कि वो अपनी कल्पना में खोया रहा होगा इसीलिए उसको सामने से आती साइकल नहीं दिखी होगी। पिटाई तो विधान की पहले भी हुई थी मगर इस बार उसके पिता ने उस पर जो बेबुनियाद इल्ज़ाम लगाया था वो विधान लोनी को सहन नहीं हुआ और वो अपने पिता की दूकान छोड़कर गंगा की तरफ भाग निकला यह कहते हुए कि मैं गंगा में डूबकर मरने जा रहा हूँ। उसका पिता निधान लोनी जानता था कि विधान को तैरना अच्छी तरह आता है इसलिए उसके डूबने का कोई खतरा नहीं है। उसने सोचा कि अभी थोड़ी देर बाद जब गुस्सा उतरेगा तो विधान हर बार की तरह इस बार भी फिर से काम पर आ जाएगा। मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था।
काफी देर तक इधर उधर घूमता विधान मणिकर्णिका घाट पर पहुँचा। वहाँ पहुँचकर उसे भूख लगी। तब उसने सोचा कि बस बहुत हो गया अब घर वापस चलना चाहिए। ठीक उसी समय किसी ने पुकारा, “बम बम भोले! अरे बच्चा जरा इस कमंडल में पानी तो भरकर ला। साधू की सेवा करेगा तो भोलेनाथ तुझ पर प्रसन्न होंगे।”
विधान मुड़ा तो देखा चार बाबाओं की एक टोली अपने लिए खाना पका रही है। उसने साधू से कमंडल लिया और घाट के किनारे लगी नाव पर चढ़कर नाव की दूसरी तरफ से कमंडल को गंगा में डुबोकर पानी भर लाया। साधू ने उसके चेहरे की तरफ देखकर पूछा, “बच्चा भूख लगी है क्या?”
विधान के हाँ में सर हिलाने पर बाबा ने जस्ते की एक पुरानी घिसी पिटी थाली निकाली और विधान को खाने के लिए खिचड़ी परोस दी। भूखा विधान थोड़ी ही देर में सारी खिचड़ी चट कर गया। बाबा ने फिर पूछा, “बच्चा, हम तो तीर्थयात्रा पर निकले हैं इसके बाद संगम, फिर अयोध्या फिर नैमिषारण्य और उसके बाद हरिद्वार जाएँगें। तुझे अगर हमारे साथ चलना हो तो चल।”
विधान लोनी का गोरा चेहरा खुशी से दमक उठा। यही तो वह चाहता था। कहानियों में नये नये स्थानों के बारे में पढ़कर वो बड़ा रोमांचित होता था। अक्सर उसका मन करता कि उड़ कर जाए और नये नये जंगलों, नदियों और पर्वतों पर घूमे। क्या पता कहीं कोई छुपा हुआ खजाना उसे मिल जाये और उसकी जिंदगी बदल जाये या फिर घूमते घूमते कहीं भगवान से ही भेंट हो जाये तो उसका धरती पर जन्म लेना सफल हो जाये। यही सब सोचकर और अपने पिता की डाँटमार से कुछ दिनों तक बचा रहने के लिए विधान ने हाँ कर दी। उस समय विधान की उम्र केवल तेरह साल की थी और वो सरकारी विद्यालय में कक्षा आठ का छात्र था।
(२)
जनवरी 1963 की उस सर्द रात को इलाहाबाद स्टेशन के प्रतीक्षालय में विधान ने एक अजीबोगरीब स्वप्न देखा। उसने देखा कि वो एक पक्षी की तरह अपने हाथ पाँव हिलाते हुये आकाश में उड़ता जा रहा है। सूरज धीरे धीरे लाल होता जा रहा है और उसकी लाली धीरे धीरे धरती के पेड़ों को भी लाल रंग से रँगती जा रही है। इस लाल प्रकाश में नहाया वो उड़ता जा रहा है। अचानक उसको लगा कि वो अपने हाथ पाँव नहीं हिला पा रहा है और इस वज़ह से उसके उड़ने की शक्ति समाप्त हो गई है और वो तेजी से धरती की तरफ गिर रहा है। जमीन पर लाल रंग के पानी वाली एक नदी बह रही है वो उसी में गिरने वाला है। फिर उसने देखा कि वो उस लाल पानी वाली नदी में तैरने लगा है। उसे तैरने में खूब मजा आ रहा है और वो अपनी पूरी ताकत से तैरता जा रहा है। अचानक उसे लगा कि वो तैरते तैरते बहुत थक गया है। उसने अपने हाथ पाँव चलाने बंद कर दिये हैं मगर फिर भी वो तैर रहा है। यूँ तैरते तैरते जल्द ही उसे नींद आ गई और वो सपने में सो गया।
हुआ ये कि इलाहाबाद स्टेशन पर जब साधुओं ने ठंड से बचने के लिए चिलम जलाई तो विधान ने एक नया अनुभव हासिल करने के लिए उनके साथ चिलम के दो चार कश लगा लिये। बीड़ी और सिगरेट का आनंद तो वो पहले ही अपने दोस्तों के साथ एक दो बार छुपकर ले चुका था लेकिन गाँजा इसके पहले उसने कभी नहीं पिया था। जल्द ही उसे चक्कर आने लगे और कुछ ही देर बाद वो आधी बेहोशी की स्थिति में पहुँच गया। धीरे धीरे उसे नींद भी आ गई मगर सपने लगातार आते रहे। जिस साधू ने उसे भोजन दिया था थोड़ी देर बाद वो भी विधान के साथ उसी कंबल में लेट गया और उसके बाद विधान ने वो सपना देखा जिसका जिक्र ऊपर किया जा चुका है। इस सपने के साथ एक अजीब बात ये थी कि जागने पर भी ये सपना विधान को पूरी तरह याद था।
अगले दिन अयोध्या की एक धर्मशाला में गाँजा पीकर सोने के बाद विधान ने फिर वैसा ही सपना देखा। उसे आश्चर्य हुआ कि एक ही सपना वो दो बार कैसे देख सकता है क्योंकि आज तक उसके साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था कि उसने एक ही सपना जस का तस दो बार देखा हो। कुछ दिनों तक यही चलता रहा। विधान गाँजा पीकर सोता और वही सपना फिर से देखता। अयोध्या से साधुओं की वो टोली नैमिषारण्य पहुँची। वहाँ कुछ दिनों तक तो विधान दिन भर जंगलों में घूमता फिरता रहा फिर धीरे धीरे उसे बोरियत होने लगी। उसने साधुओं से कहा कि वो अपने घर लौटना चाहता है। साधुओं ने विधान को पानी लाने भेजकर आपस में सलाह मशविरा किया और विधान के लौटने पर उसे बताया कि अब हम लोग ऋषिकेश जा रहे हैं। अगर तुम्हें पहाड़ देखने का शौक है तो साथ चलो वरना अगली रेलगाड़ी से अपने घर को लौट जाओ।
विधान को घर की याद भी आ रही थी और वो पहाड़ भी देखना चाहता था। अंत में सोचविचारकर उसने यही निर्णय लिया कि ऋषिकेश में पहाड़ देखकर वह सीधा बनारस लौट जाएगा। इस तरह वो ऋषिकेश पहुँचा। शुरू शुरू में कुछ दिन तो उसे पहाड़ बहुत अच्छे और अनूठे लगे मगर जल्द ही वो पहाड़ों से भी ऊब गया। फिर एक दिन वो बिना साधुओं को कुछ बताए हरिद्वार भाग आया और वहाँ से बनारस के लिए ट्रेन पकड़ ली। ट्रेन के जनरल डिब्बे में बैठकर वो बेटिकट बनारस पहुँचा।
(३)
अब तो विधान को जब भी मार पड़ती वो कुछ दिनों के लिए घर से गायब हो जाता। कभी किसी दोस्त के यहाँ रुक जाता, कभी किसी रिश्तेदार के यहाँ भाग जाता। विधान की आवारागर्दी देखकर धीरे धीरे निधान लोनी को यकीन होने लगा कि विधान अपने जीवन में कुछ कर नहीं पाएगा। वो भी उन्हीं की तरह चाय बेचेगा। अंत में उन्होंने निर्णय लिया कि विधान की शादी कर देनी चाहिए वरना ये बार बार घर से भागता रहेगा। यह सोचकर उन्होंने अपने मित्रों और रिश्तेदारों में ये बात फैलानी शुरू कर दी कि वो विधान की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहते हैं। बात फैली तो विधान के लिए रिश्ते आने भी शुरू हो गये। अंत में निधान ने सारनाथ की एक लड़की से विधान का विवाह तय कर दिया।
जब विधान को ये बात पता चली तो वो जाकर अपने पिता से बोला, “पिताजी अभी मेरी उम्र ही क्या है। अभी तो मुझे सारा देश घूमना है और हो सके तो विदेश भी जाना है। मौका मिलेगा तो मैं आगे पढ़ना भी चाहता हूँ। आप इतनी जल्दी मेरा विवाह क्यों कर देना चाहते हैं।”
निधान बोले, “सारा देश घूमने के लिए पैसा क्या तेरा बाप देगा। मैं यहाँ सुबह से शाम तक खटता हूँ तब किसी तरह से परिवार को दो जून की रोटी नसीब होती है। तुझे मेरे काम में हाथ बटाना चाहिए ताकि तेरे बूढ़े होते जा रहे पिता पर बोझ थोड़ा कम हो। देश घूमेंगे। मेरी सात पुश्तों में भी कोई देश घूमने नहीं गया। और घूम कर करना भी क्या है। हम तो दुनिया की सबसे पवित्र और सबसे अच्छी जगह पर रह रहे हैं। बनारस से अच्छी जगह दुनिया में और कौन सी है। भोलेनाथ और गंगा दोनों बगल में हैं। जब तक जिन्दा रहो रोज गंगास्नान करके भोले का दर्शन करो और मरो तो सीधा स्वर्ग। आदमी को और क्या चाहिए जीवन में।”
विधान बोला, “पिताजी, अभी मेरी शादी मत कीजिए। मैं आपके हाथ जोड़ता हूँ। पाँव पड़ता हूँ।”
निधान ने सोचा कि अचानक शादी तय हो जाने पर सारे लड़के थोड़ा बहुत नर्वस हो जाते हैं। विधान के साथ भी यही हो रहा है। दो चार दिन में सब ठीक हो जाएगा।
विधान अपने बाप के चेहरे को देखकर समझ गया कि उसकी बात का कोई असर उसके पिता पर होने वाला नहीं है। वो घर से भाग जाना चाहता था लेकिन कई बार घर से भागकर वो जान चुका था कि यहाँ घर पर कम से कम भूख लगने पर समय से खाना तो मिल जाता है। बाहर तो खाने तक का कोई ठिकाना नहीं होता।
विधान बड़ा उदास रहने लगा। अब न तो खाने में उसका मन लगता था, न आवारागर्दी में, न गंगा में, न भोलेनाथ में। उन दिनों प्रदेश में चुनाव होने वाले थे। ऐसे में उसके दोस्त ने उसे धर्मसेवा संघ का सदस्य बनने के लिए कहा। धर्मसेवा संघ को बने ज़्यादा दिन नहीं हुए थे और उसके उच्च पदाधिकारी ऐसे नवयुवकों की खोज में थे जो निःस्वार्थ भाव से धर्म की सेवा में अपना तन और मन अर्पित कर सकें। संघ का मुख्य काम धर्म का प्रचार प्रसार करना और आपदा के समय लोगों की मदद करना था मगर यह भी सच था कि संघ एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल से जुड़ा हुआ था और चुनाव के समय उस दल का प्रचार प्रसार और उस दल के लिए लोगों से वोट माँगने का काम करता था।
संघ का सदस्य बनने के बाद विधान का ज़्यादातर समय संघ के कार्यों में बीतने लगा। इससे उसके मन की उदासी धीरे धीरे कम होने लगी। संघ के उच्चाधिकारियों से उसकी जान पहचान दिनोंदिन बढ़ने लगी। ऐसे ही समय में एक दिन विधान की शादी हो गई। निधान ने विधान के लिए बड़ी सुन्दर पत्नी तलाश की थी ताकि विधान ज़्यादातर समय घर पर ही रहे और धीरे धीरे घर तथा दूकान के कामों में उसका हाथ बँटाने लगे।
विधान ने अपनी पत्नी को सुहागरात को ही साफ साफ बता दिया कि स्त्रियाँ उसे आकर्षित नहीं करतीं। उसे बलिष्ठ और हट्टे कट्टे पुरुष आकर्षित करते हैं। उसने यह शादी केवल अपने पिता के दबाव में आकर की है। वो उस तरह का भी पुरुष नहीं है जिसे पुरुषों और स्त्रियों में समान रूप से रुचि होती है।
विधान की पत्नी का नाम सुशीला था। वो सारनाथ के पास एक गाँव से आयी थी और उसकी शिक्षा केवल पाँचवीं कक्षा तक ही हुई थी। उसके माँ बाप बचपन में ही गुज़र चुके थे और उसके चाचा ने उसे पाल पोस कर बड़ा किया था। वो तो अपने माँ बाप की इकलौती लड़की थी मगर चाचा के चार बेटियाँ और थीं। उसके चाचा ने सारनाथ में एक पान की दूकान खोल रखी थी जिससे बड़ी मुश्किल से सबका गुज़ारा चल पाता था। अभी उन्हें चारों लड़कियों की शादी भी करनी थी। विधान से सारी बात जानकर उसे झटका तो लगा लेकिन उसके पास विधान के साथ रहने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
(४)
दिन बीतने लगे। विधान ज़्यादातर समय घर के बाहर ही रहने लगा। वो तन मन धन से संघ के कार्यों के लिए समर्पित हो गया। निधान को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतनी सुन्दर पत्नी मिलने के बाद भी विधान घर पर नहीं रहता। निधान ने विधान की माँ को ये बात बताई तो वो भी बोली कि आप ठीक ही कहते हैं अब तक तो बहू को गर्भवती हो जाना चाहिए था। एक बच्चा अगर घर में होता तो विधान का भी मन घर में लगा रहता।
एक दिन जब विधान घर आया तो निधान ने उसको और सुशीला को अपने पास बुलाकर पूछा, “बहुत समय हो गया अब ये बताओ तुम लोग मुझे दादा कब बना रहे हो”।
विधान की माँ ने अपने बेटे का पक्ष लेते हुए बोली, “अब तक तो तुम्हें बच्चा हो जाना चाहिए था सुशीला कहीं तुम बाँझ तो नहीं हो।“
सुशीला क्या कहती? वो फूट-फूट कर रोने लगी। विधान की माँ ने समझा कि सुशीला सचमुच बाँझ है इसलिए रो रही है। उन्होंने सुशीला को खरी खोटी सुनानी शुरू कर दी। सुशीला कुछ देर तक तो सब सहती रही फिर आखिर उसके मुँह से निकल ही गया कि आपके बेटे को स्त्रियों में नहीं पुरुषों में दिलचस्पी है। इसके बाद तो सब को मानो साँप सूँघ गया।
पत्नी से घर वालों के सामने अपमानित होने के बाद विधान फौरन घर से बाहर निकल गया और गंगा की सीढ़ियों पर बैठकर आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगा। सोचते सोचते उसे लगा कि मरने से पहले एक भार भोलेनाथ का दर्शन कर लेना चाहिए। यह विचार मन में आते ही वो विश्वनाथ मंदिर की तरफ निकल पड़ा। दर्शन करने के बाद मंदिर के पिछवाड़े पहुँचा जहाँ भोलेनाथ पर चढ़ाये हुए फूल, धतूरे इत्यादि फेंके जाते थे। उसने उस कचरे में से कुछ धतूरे और कनेर के फल इकट्ठा कर लिये। फिर गंगा तट पर बैठकर उसने धतूरे और कनेर के बीज निकाले और वहीं पड़ा एक पत्थर उठाकर उसे घाट की सीढ़ियों पर पीस डाला। उस चूर्ण के अत्यन्त कड़वे स्वाद के बावजूद उसने गंगाजल की मदद से उसे निगल लिया। फिर वो गंगा के किनारे किनारे सीढ़ियों पर चलते चलते ऐसी जगह पहुँचा जहाँ इक्का दुक्का लोग ही बैठे थे। कुछ ही क्षणों बाद विधान को उल्टियाँ होने लगीं। पता नहीं यह गंगाजल का असर था या विधान ने कुछ ज्यादा ही मात्रा में जहरीले बीजों का सेवन कर लिया था। इन उल्टियों से उसके पेट में गया अधिकांश जहरीला पदार्थ बाहर आ गया। धीरे धीरे बचे हुए जहरीले पदार्थों ने उसके दिमाग पर असर करना शुरू कर दिया। उसने देखा कि मछलियों के बड़े बड़े पंख निकल आये हैं और वो पानी में न तैरकर हवा में उड़ रही हैं। सारी नौकाएँ रथों में बदल गई हैं और पानी पर चल रही हैं। गंगा के धारा के बीचोबीच से एक जटाधारी निकलकर उसकी ओर बढ़ रहा है। पास आने पर विधान ने देखा कि उस जटाधारी के गले से नाग लिपटा हुआ है। तब विधान को समझ आया कि ये जटाधारी और कोई नहीं स्वयं भोलेनाथ हैं।
विधान के पास आकर भोलेनाथ बोले, “विधान वर माँगो।”
विधान बोला, “प्रभो मैं मर जाना चाहता हूँ। कृपया मुझे अपनी शरण में ले लीजिए।”
भोलेनाथ बोले, “वत्स, अभी तुम्हारी मृत्यु का समय नहीं आया है इसलिए कोई और वरदान माँगो।”
यह सुनकर विधान को झटका लगा कि अभी उसे और जीना पड़ेगा। अपनी पत्नी से और अपमानित होना पड़ेगा और अगर बात मुहल्ले वालों को पता चल गई तो हर पल, हर क्षण, हर किसी से अपमानित होना पड़ेगा। उसने अपनी यह समस्या भोलेनाथ के सामने रखी। भोलेनाथ कुछ क्षण सोचते रहे फिर बोले, “वत्स इसका तो एक ही इलाज है कि मैं तुम्हें सम्मोहनी शक्ति प्रदान कर दूँ ताकि तुम सबको सम्मोहित करके इस बात फैलने से रोक सको। ठीक है मैं तुम्हारी जिह्वा को सम्मोहनी शक्ति प्रदान करता हूँ। अब तुम अपनी वाणी से किसी को भी सम्मोहित कर सकोगे। लेकिन इसके लिये तुम्हें निरंतर अभ्यास की आवश्यकता पड़ेगी। अभ्यास करते रहने से धीरे धीरे यह शक्ति बढ़ती जाएगी और एक दिन यह शक्ति इतनी बढ़ सकती है कि तुम अपनी वाणी से सारी दुनिया को सम्मोहित कर लो। सबकुछ तुम्हारे श्रम और लगन से किये गये अभ्यास पर निर्भर करता है। किन्तु ध्यान रहे तुम किसी को कभी बताना मत कि ऐसी कोई शक्ति तुम्हारे पास है। ऐसा करते ही तुम शक्तिहीन हो जाओगे। एक बात और, अब से आईना कम से कम देखना। इस शक्ति के साथ सबसे बड़ी समस्या यहीये होती है कि इसको धारण करने वाले के मन में आईना देखने की बड़ी प्रबल इच्छा होती है। अगर वो अपनी इस इच्छा पर काबू नहीं कर पाता तो आईना देखते देखते वो अपने प्रतिबिम्ब से बातें करने लगता है और उस स्थिति में वो स्वतः सम्मोहित हो जाता है। अपने ही सम्मोहन में जकड़ा व्यक्ति कुछ ही देर में इतना आत्ममुग्ध हो जाता है कि उसे अपने अलावा बाकी सारी दुनिया तुच्छ लगने लगती है। अंततोगत्वा वो इस दुनिया से मुक्ति पाने का फैसला कर लेता है। इसलिए अब से तुम आईना कम से कम देखना।”
विधान बोला. “जैसी आपकी इच्छा प्रभो।”
इसके बाद विधान की चेतना लुप्त होती चली गई।
(५)
जब विधान को होश आया तो वो अपने बिस्तर में लेटा हुआ था। उसकी पत्नी उसके सिरहाने बैठकर पंखा झल रही थी। धीरे धीरे विधान को सबकुछ याद आना शुरू हो गया। अर्द्धविक्षिप्तावस्था में देखा गया स्वप्न विधान को ज्यों का त्यों याद था। विधान समझ नहीं पा रहा था कि जो कुछ उसने देखा था वो सपना था या सच इसलिए उसने सबसे पहले अपनी पत्नी पर ही सम्मोहनी शक्ति का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया और बोला, “सुशीला आज भोलेनाथ ने मुझे निश्चित मृत्यु से बचा लिया। अब मैं अपना सारा जीवन उन्हीं को समर्पित कर देना चाहता हूँ। कल से मैं घर छोड़ दूँगा और देश भ्रमण पर निकल जाऊँगा। अब गृहस्थ आश्रम से मेरा कोई लेना देना नहीं होगा। अब मैं केवल धर्म के प्रचार और प्रसार में अपना सारा जीवन बिता दूँगा।”
सुशीला बोली, “ये तो बड़ी ख़ुशी की बात है। आप ऐसा ही कीजिए। धर्म और ईश्वर के लिए कार्य करते हुए आपको बहुत पूण्य मिलेगा और उसका आधा हिस्सा अर्द्धांगिनी होने के नाते मुझे भी मिलेगा। इस तरह से हम दोनों को निश्चय ही मोक्ष की प्राप्ति होगी। इससे ज्यादा एक मनुष्य को और क्या चाहिए। मैं सदा आपको अपने मन मन्दिर का देवता मानकर पूजूँगी।”
विधान चौंक उठा। भले ही उसने अर्द्धविक्षिप्तावस्था में स्वप्न देखा हो मगर सम्मोहन शक्ति उसकी वाणी में सचमुच आ चुकी थी। उसने मन ही मन भोलेनाथ को धन्यवाद दिया और अगले ही दिन अपनी पत्नी को छोड़कर धर्मसेवा संघ के प्रचारक के रूप में देश भ्रमण पर निकल गया।
विधान देश भर में जहाँ जहाँ गया वहाँ वहाँ उसने अपनी वाणी से सम्मोहित करके बहुत सारे लोगों को धर्मसेवा संघ का सदस्य बन दिया। दस वर्षों तक विधान इसी तरह भटकता रहा और देश के कोने कोने से लोगों को घर्मसेवा संघ का सदस्य बनाता रहा। जब वह वापस लौटा तो उसकी मेहनत और लगन को देखकर उसे धर्मसेवा संघ का प्रदेश अध्यक्ष चुन लिया गया। निरंतर अभ्यास से उसकी वाणी में मौज़ूद सम्मोहन शक्ति बहुत बढ़ गई थी और अब वो अपनी वाणी से सैकड़ों लोगों को एक साथ सम्मोहित कर लेता था।
धर्मसेवा संघ में विधान लोनी का प्रभाव और काम देखकर राष्ट्रवादी पार्टी ने प्रदेश के अगले चुनावों का भार उसे सौंप दिया। ये उन दिनों की बात है जब आजादी के समय से चली आ रही पुरानी सरकार से प्रदेश के लोगों का मोहभंग हो चुका था और वो एक नई और ईमानदार सरकार चाहते थे। राष्ट्रवादी पार्टी को उन दिनों विधान सभा की अस्सी सीटों में से एक या दो सीटें मिला करती थीं। ऐसे में किसी को भी विधान से कोई चमत्कार की उम्मीद नहीं थी हाँ राष्ट्रवादी पार्टी के उच्चाधिकारी यह जरूर चाहते थे कि प्रदेश में पार्टी की स्थिति कुछ तो बेहतर हो और कम से कम इन विधान सभा चुनावों में वो दहाई के आँकड़े तक तो पहुँचें।
लेकिन विधान लोनी के मन में तो कुछ और चल रहा था। अब उसे यह अहसास होने लगा था कि उसकी सम्मोहन शक्ति क्या क्या गुल खिला सकती है। बनारस शहर से बाहर निकलकर सुल्तानपुर रोड़ पर आते ही एक बहुत पुरानी मस्जिद पड़ती थी। लोग कहते थे कि पहले इस मस्जिद की जगह एक शिव मंदिर था जिसे तुड़वाकर औरंगजेब ने यह मस्जिद बनवा दी थी। इस मस्जिद को औरंगी मस्जिद भी कहा जाता था। एक दिन विधान लोनी ने धर्मसेवा संघ के एक हजार कार्यकर्ताओं को उस मस्जिद से थोड़ी दूर एक मैदान में इकट्ठा किया और उनसे बोला, “आप तो जानते ही हैं कि भगवान भोलेनाथ की मुझपर असीम कृपा है। आज रात भोलेनाथ मेरे सपने में आये थे। उन्होंने कहा कि औरंगी मस्जिद जिस शिव मंदिर पर बनी है वो मुझे काशी विश्वनाथ के समान ही प्रिय है। उन्होंने हमें ये आदेश दिया है कि इस मस्जिद को तोड़कर हम यहाँ पर फिर से शिव मन्दिर का निर्माण करें।”
विधान के शब्दों की सम्मोहन शक्ति ने फ़ौरन अपना असर दिखना शुरू किया और एक हजार लोगों की भीड़ ‘हर हर महादेव’ का नारा लगाते हुए मस्जिद की ओर बढ़ गई। भीड़ को नियंत्रण करने के लिए लगाये गये पुलिसवाले भी विधान का भाषण सुनकर पूरी तरह सम्मोहित हो चुके थे। इस भीड़ ने देखते ही देखते मस्जिद का नामोनिशान मिटा दिया। जैसे जैसे ये खबर फैली देश भर में दंगे फैले। दंगों पर तो धीरे धीरे काबू पा लिया गया लेकिन इन दंगों से नफ़रत के बीज छिटककर देश के कोने कोने में फैल गये। चुनाव होते होते इन बीजों से नफ़रत के पेड़ उग आये। हवाएँ चलीं और इन पेड़ों से नफ़रत की खुशबू उड़-उड़कर देश भर में फैलने लगी। लोगों को हिन्दू मुसलमानों की लड़ाईयों के तमाम किस्से याद आने लगे और जिस राष्ट्रवादी पार्टी का प्रदेश में कुछ महीने पहले तक नामोनिशान नहीं था वो दो तिहाई बहुमत से सत्ता में आ गई। राष्ट्रवादी पार्टी ने प्रदेश स्तर के एक नेता को मुख्यमंत्री बना दिया।
(६)
विधान का कद धर्मसेवा संघ में बढ़ता ही चला गया। धीरे धीरे पाँच वर्ष बीत गये और अगला चुनाव नजदीक आ गया। नफ़रत के पेड़ अब मुरझा चुके थे। औरंगी मस्जिद तो तोड़ी जा चुकी थी लेकिन वहाँ शिव मंदिर अब तक नहीं बनाया जा सका था। अब धीरे धीरे लोगों की समझ में आने लगा था कि धर्म के नाम पर राष्ट्रवादी पार्टी ने उन्हें मूर्ख बनाया था ताकि वो सत्ता हासिल करने में कामयाब हो सके।
विधान को अहसास होने लगा था कि यदि ज़ल्द ही कुछ किया न गया तो इस बार राष्ट्रवादी पार्टी चुनाव हार जाएगी। उन्हीं दिनों राष्ट्रवादी पार्टी के अध्यक्ष का बनारस आना हुआ। उनके लिए सारा प्रबंध करने की जिम्मेदारी विधान को सौंप दी गई। विधान अपनी सेवा और अपनी वाणी में मौजूद सम्मोहन शक्ति से उन्हें यह विश्वास दिलाने में कामयाब हो गया कि यदि विधान को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया जाय तो पार्टी इस बार भी प्रदेश का विधान सभा चुनाव जीत जाएगी। अध्यक्ष महोदय ने दिल्ली पहुँचते ही विधान को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। अब बारी थी विधान को अपनी वाणी में मौजूद सम्मोहन शक्ति का जलवा दिखाने की। वो ये बात भी समझ चुका था कि इस बार धर्म का मुद्दा नहीं चलेगा इसलिए इस बार उसने विकास को मुद्दा बनाया। गरीबों और किसानों से भरे हुए इस प्रदेश में लोगों को सुनहरे सपने के अलावा और क्या चाहिए था। हर तरफ विकास, विकास, विकास गूँजने लगा। विधान जहाँ भी चुनावी सभाएँ करता वहाँ लाखों की संख्या में लोग उसे सुनने आते और उसकी वाणी में मौजूद सम्मोहन शक्ति से पूरी तरह सम्मोहित होकर लौटते। जब तक चुनावों की घोषणा हुई पूरा प्रदेश विकास के जादूई गोले में झाँककर सम्मोहित हो चुका था। चुनाव हुए तो प्रदेश में अस्सी प्रतिशत का रिकार्ड मतदान हुआ। प्रदेश की सारी की सारी सीटें राष्ट्रवादी पार्टी को मिलीं।
विधान को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया। मुख्यमंत्री बनने के बाद विधान को वो सबकुछ हासिल हो गया जिसका एक आम आदमी केवल स्वप्न ही देख सकता था। लेकिन एक समस्या अब भी थी। वो किसी को ये नहीं बता सकता था कि भोलेनाथ के वरदान के परिणामस्वरूप उसकी वाणी में सम्मोहन शक्ति का निवास है और इस शक्ति की सहायता से वो पूरे विश्व पर राज कर सकता है। किसी को न बता पाने के कारण उसका मन बार बार आईने में देखकर ख़ुद से बातें करने के लिए मचलने लगता। लेकिन हर बार उसे भोलेनाथ की बताई बात याद आ जाती और वो मन मसोसकर रह जाता था।
मुख्यमंत्री बनने के बाद विधान का ध्यान ख़ुद को सजाने सँवारने पर गया। उसके लिए हर हफ़्ते एक नया सूट सिला जाने लगा। कागज़ों पर यही दिखाया जाता कि यह सूट किसी ने मुख्यमंत्री महोदय को तोहफ़े में दिया है। विधान का मन प्रदेश के बड़े बड़े लोगों में उठने बैठने के लिए भी मचलने लगा। सो अक्सर वो बड़े बड़े लोगों की बड़ी बड़ी बैठकों और पार्टियों में जाने लगा। उसने एक चौड़ी छाती वाले अभिनेता को अपने प्रदेश का ब्रांड एम्बेसडर बना लिया। देखते ही देखते जिन जमीनों पर कल तक खेती होती थी उन पर बड़े बड़े कारखाने और बड़ी बड़ी इमारतें खड़ी होने लगीं। किसानों के गाँव हों या या शहरों में बसी झुग्गी झोंपड़ियाँ सब रातोंरात खाली हो जाती थीं और अगले दिन सुबह से ही वहाँ बड़े बड़े बुलडोजर चलने लगते थे। कोई आवाज़ उठती थी तो उसे मुख्यमंत्री निवास आने का निमंत्रण दिया जाता था जहाँ जाने के बाद वो आवाज़ इस कदर सम्मोहित होकर लौटती थी कि फिर वो आजीवन विधान का गुणगान करती रहती थी। प्रदेश के विकास का सूचकांक धड़ाधड़ ऊपर जाने लगा और मानवता का सूचकांक उतनी ही तेज़ गति से नीचे गिरने लगा। देश भर में ये बात फैलने लगी कि विधान के प्रदेश का विकास देश में सबसे तेज़ गति से हो रहा है। इस तरह पाँच साल तक जनता विधान के सम्मोहन में बँधकर सोती रही और उसी नींद में चलते हुए पाँच साल बाद फिर से विधान को मुख्यमंत्री चुन आई।
(७)
विधान को दुबारा मुख्यमंत्री बने तीन साल गुज़र गये और देश के लोकसभा चुनाव सर पर आ गये। अब विधान का मन मुख्यमंत्री पद से ऊब चुका था। मुख्यमंत्री का सम्मान केवल उसके प्रदेश में ही होता है। अपने प्रदेश में तो वो राजा होता है लेकिन प्रदेश के बाहर जाते ही वो अपने प्रदेश की जनता का नौकर भर रह जाता है। विधान अब देश का प्रधानमंत्री बनना चाहता था। पार्टी में उससे आगे कई कद्दावर नेता देश के प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे। लेकिन राष्ट्रवादी पार्टी अबतक कभी अपने दम पर देश में सरकार नहीं बना पाई थी। ऐसे में विधान ने एक एक करके पार्टी के सभी कद्दावर नेताओं से मिलना शुरू किया। जो नेता विधान से एक बार मिल लेता वो विधान की वाणी में मौजूद सम्मोहन शक्ति से बच न पाता। इस तरह धीरे धीरे विधान ने पार्टी के अधिकांश नेताओं को अपने पक्ष में कर लिया। परिणाम यह हुआ कि जब लोकसभा चुनावों की घोषणा होने पर पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई तो उसमें प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में विधान को चुन लिया गया। इसके परिणाम स्वरूप पार्टी के कई अन्य वरिष्ठ नेता जो प्रधानमंत्री बनने का सपना सँजोए हुए थे विधान से नाराज़ हो गए। लेकिन विधान के पास तो हर मर्ज़ की अचूक दवा के रूप में उसकी वाणी थी ही। वो एक एक करके नाराज़ नेताओं से मिलने लगा और एक एक करके पार्टी के वरिष्ठ नेता मीडिया को बताने लगे कि विधान प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वथा उपयुक्त है और वो आने वाले चुनाव में विधान को पूरा सहयोग देंगे।
इस तरह पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को मनाने के बाद विधान पर लोकसभा चुनावों में पार्टी का प्रचार करने की जिम्मेदारी आ गई। इस बार विधान को बहुत ही कम समय में देश के अधिकांश मतदाताओं को सम्मोहित करना था। कार्य बहुत कठिन था इसलिए विधान रात में केवल चार-पाँच घंटे ही सोता था। सुबह से शाम तक वो हैलीकॉप्टर की मदद से एक चुनाव क्षेत्र से दूसरे चुनाव क्षेत्र में रैली करता रहता था। इस बात की चर्चा पूरे देश में हो रही थी कि विधान के भाषण बेहद अनूठे होते हैं। विधान को सुनने के लिए चुनाव क्षेत्र के कोने कोने से लोग आते थे। जब विधान बोलना शुरू करता था तो उसकी जिह्वा से अपने आप उस चुनाव क्षेत्र के इतिहास का वो काल सुनाई देने लगता था जिस पर वहाँ के लोगों को गर्व होता था। हर स्थान के इतिहास का कोई न कोई काल ऐसा होता है जिसपर वहाँ रहने वालों को गर्व होता है। विधान की वाणी से अपने आप उसी चुनाव क्षेत्र की भाषा निकलने लग जाती थी और रैली में आये हजारों हजार लोग पूरी तरह सम्मोहित होकर अपने घर लौटते थे।
इस तरह रात-दिन विधान ने मेहनत की। जब चुनाव परिणामों की घोषणा हुई तो राष्ट्रवादी पार्टी लोकसभा की दो तिहाई से ज़्यादा सीटों पर विजयी हुई। विधान ने सोचा कि थोड़ा वक्त और मिला होता तो लोकसभा की बाकी सीटें भी उसकी पार्टी के ही खाते में आतीं। कुछ भी हो आख़िरकार विधान की एक और ख़्वाहिश पूरी हो गई। वो देश का प्रधानमंत्री बन गया।
(८)
जैसे जैसे विधान की वाणी में सम्मोहन शक्ति बढ़ती जा रही थी विधान की महत्वाकांक्षा भी बढ़ती जा रही थी। अब वो चाहता था कि उसका देश अपने समाज में मौजूद तमाम बुराइयों के बावजूद कुछ ही वर्षों में दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बन जाय। उसकी संस्कृति दुनिया की बाकी सारी संस्कृतियों को उखाड़ कर फेंक दे। उसका धर्म दुनिया का एकमात्र धर्म बन जाय और उसकी भाषा दुनिया की एकमात्र भाषा। दुनिया जो कुछ भी करे उससे सलाह लेकर करे। वो अमेरिका के राष्ट्रपति से भी ज्यादा शक्तिशाली आदमी बनना चाहता था। इसके लिए उसने दुनिया के कोने कोने में जाकर लोगों को अपनी वाणी से सम्मोहित करने का निश्चय किया।
सबसे पहले विधान जापान पहुँचा। वहाँ उसने बुद्ध पर बोलना शुरू किया। सम्मोहन शक्ति के कारण उसके मुँह से जापानी भाषा अपने आप निकलने लगी। उसने वही सब कहा जो वहाँ के लोग सुनना चाहते थे। कुछ ही देर में वहाँ खड़ी जनता पूरी तरह सम्मोहित हो चुकी थी। अब तो सम्मोहन शक्ति का प्रभाव इतना बढ़ चुका था कि विधान को टीवी पर देखने वाले या उसकी आवाज़ रेडियो पर सुनने वाले भी सम्मोहित होने लगे थे। जापान से अमेरिका, चीन, कनाडा, रूस, इस तरह विधान का सफर चलता रहा और जब वो भारत लौटा तो दुनिया के दस सबसे बड़े देशों की जनता पूरी तरह उसके शब्दों के सम्मोहन में बँध चुकी थी। अब विधान को विश्वास होने लगा था कि वो जो चाहे कर सकता है।
उसी रात विधान ने एक स्वप्न देखा। उसने देखा कि आसमान के नज़दीक कहीं बादलों में ख़ुदा, मसीहा, भोलेनाथ और अन्य धर्मों के अध्यक्षों की बैठक हो रही है। भोलेनाथ अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे हैं और बाकी सब उनके सामने रखी अन्य कुर्सियों पर। थोड़ी देर तक सब आपस में खुसर पुसर करते रहे फिर अन्त में मसीहा भोलेनाथ से बोले, “आप समय के द्वारा हम सबसे पहले लाये गये हैं इसलिए आप हमारे बड़े भाई की तरह हैं। हम सब आपका सम्मान करते हैं लेकिन इस बार आपने ये कैसा वरदान दे दिया ब्रदर। अब तो सम्मोहन में बँधे सारे लोग आपका धर्म स्वीकार कर लेंगे और हम बिना प्रशंसा के भूखों मर जाएँगें। हमारे बीच हुए समझौते के अनुसार हममें से कोई एक यदि किसी इंसान को वरदान देता है तो दूसरा उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करता। अब अगर आपने जल्द ही कुछ न किया तो हमें ये समझौता रद्द करना पड़ेगा।”
भोलेनाथ मुस्कुराकर बोले, “जैसा कि आप सब जानते हैं कि हमारे द्वारा दिये गये वरदानों में ही उनकी काट छुपी होती है। जैसे भस्मासुर वरदान के द्वारा प्राप्त शक्ति से स्वयं ही भस्म हो गया था वैसे ही सम्मोहन शक्ति भी स्वयं ही स्वयं को नष्ट करेगी। जल्द ही अपने सम्मोहन का शिकार विधान स्वयं हो जाएगा। अपने ही सम्मोहन में फँसकर वो ख़ुद स्वयं को नष्ट कर लेगा। आप सब निश्चिंत रहें बस कुछ ही दिनों की बात है फिर सब पहले जैसा हो जाएगा।”
डर के मारे विधान की नींद टूट गई। उसने बगल में रखे टेबल लैम्प का बटन दबाया। वातानुकूलित कमरे में भी उसका शरीर पसीने से नहाया हुआ था। तभी उसकी नज़र दीवार पर लगे आईने की तरफ गई। उसकी निगाह ख़ुद से मिली और उसे वरदान देते समय भोलेनाथ की बताई बात याद आने लगी। वो चिल्ला उठा, “नहीं मैं आत्महत्या कभी नहीं करूँगा। मुझे आत्महत्या नहीं करनी है। मैं आज के बाद आईना ही नहीं देखूँगा।”
विधान ने फौरन बगल में रखा पानी का गिलास उठाया और आईने पर दे मारा। आईना टूटकर नीचे गिर पड़ा। विधान ने उसी दिन अपने बँगले के सारे आईने निकलवा दिये। उसके मित्रों और जाननेवालों में ये ख़बर धीरे धीरे फैलने लगी कि विधान को आईने से डर लगने लगा है।
विधान दफ़्तर पहुँचा। रोज़ जिन आईनों को देखता हुआ वो गुज़र जाता था आज उन्हें देखते हुए वो डर के मारे भीतर तक काँप जाता था। दफ़्तर में बैठकर उसने थोड़ी देर तक सोच विचार किया फिर एक कार्यालय आदेश जारी किया कि प्रधानमंत्री कार्यालय में लगे सारे आईने चाहे वो शौचालय में ही क्यों न लगे हों निकालकर तोड़ दिये जायँ। शाम को विधान पार्टी के मुख्यालय में सभी विधायकों की एक कार्यशाला को सम्बोधित करने जाने वाला था। उसे याद आया कि वहाँ भी तो तमाम आईने लगे हुए हैं। उसने पार्टी के अध्यक्ष को बुलावाया जो उसके सम्मोहम में पूरी तरह बँधा हुआ था और दुनिया उसे विधान का दाहिना हाथ कहती थी। उसने फ़ौरन पार्टी मुख्यालय के सारे आईने निकलवाकर फिंकवा दिये। लेकिन दुनिया सिर्फ़ विधान के घर या दफ़्तर तक ही सीमित नहीं थी। दुनिया बहुत बड़ी थी और आईने दुनिया में हर जगह मौजूद थे। उसे जिस भी नई जगह जाना होता वहीं से आईने तुड़वाकर फिंकवा देने का अनुरोध करता। लेकिन दुनिया बगैर आईनों के कैसे चल सकती है। आईने न होते तो दुनिया इतनी ख़ूबसूरत न होती।
जैसे जैसे विधान का डर बढ़ता जा रहा था लोगों पर उसका सम्मोहन कमजोर पड़ता जा रहा था। विधान का सारा ध्यान तो एक स्वप्न को सच मानकर आईने तुड़वाकर फिंकवाने में लगा हुआ था। उसे अपने सम्मोहन के टूटने का पता तब चला जब एक दिन उसका दाहिना हाथ कहे जाने वाला पार्टी का अध्यक्ष एक बड़े डॉक्टर के साथ आया। डॉक्टर ने अपना स्टेथेस्कोप निकाला तो उसकी चमचमाती हुई चकरी को देखते ही विधान कुर्सी से उछल पड़ा और डॉक्टर से स्टेथोस्कोप कमरे के बाहर छोड़कर आने का अनुरोध करने लगा। डॉक्टर ने बगैर स्टेथेस्कोप के ही विधान की जाँच की और बाहर निकलकर पार्टी अध्यक्ष से बोला, “शारीरिक रूप से तो ये बिल्कुल भले चंगे हैं लेकिन इन्हें एक बड़ा ही विचित्र मानसिक रोग हो गया है इसे आईनोफ़ोबिया कहते हैं। थोड़ा बहुत तो ये रोग सारे शक्तिशाली लोगों को होता है लेकिन इनके केस में यह रोग बहुत ही भीषण रूप धारण कर चुका है। इन्हें जल्द से जल्द पागलखाने भेजना होगा ताकि समय पर इनका इलाज हो सके वरना इस रोग में रोगी पहले तो कत्लेआम करवाता है और बाद में आत्महत्या कर लेता है।”
आजकल विधान पागलखाने में है। आईने जैसी कोई भी चीज देखते ही उसे पागलपन का दौरा पड़ने लगता है और वो बड़ी मुश्किल से डॉक्टरों के काबू में आता है। उसका सम्मोहन अब पूरी तरह से टूट चुका है और जनता का दिमाग अब धीरे धीरे दूसरी तरह के सम्मोहनों से भी लड़ना सीख रहा है।
(नितांत मौलिक, सर्वथा काल्पनिक एवं अप्रकाशित)
Comment
किस्साग़ोई क्या होती है इस तौर पर आपकी पिछली रचना ही मैं अभी भूला नहीं हूँ आदरणीय. इस बार चूँकि किसी व्यक्ति विशेष को साग्रह उधेड़ने का प्लान कर लिया था आपने तो कुल प्रतिफल वैसा प्रभावी नहीं होना था, नहीं हुआ.
किसी व्यक्ति से इतना प्रभावित होना कि सोते-जगते बस उसी का नाम, उसी का खयाल.. ओह, यह मैनिया का सूचक है. एक साहसी लेखक को मैनियेक नहीं होना चाहिये. ;-)))
भाई आपकी इस कथा पर एक बड़ा मशहूर मगर तनिक चलताऊ फ़िल्मी गीत याद आ गया - ग-ग-ग-ग-ग-ग-गुस्सा इतना हसीन है तो प्यार कैसा होगा ???? आप इस गीत को गीत ही रहने दीजियेगा.. इससे उभरते प्रश्न का ज़वाब मत देने लगियेगा.. क्योंकि, भाईजी, ऐसे प्रश्नों के ज़वाब की आवश्यकता नहीं हुआ करती. हा हा हा............
प्रस्तुति हेतु शुभकामनाएँ
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय राहुल जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गोविन्द जी। हर कहानी कहीं न कहीं से प्रेरित तो होती ही है। पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय धर्मेन्द्र जी कहानी अच्छी लगी किंतु, इसे पूरी तरह काल्पनिक तो नहीं कहा जा सकता है, कहानी देश के वर्तमान प्रधानमंत्री जी की जीवनी से पूरी तरह लथपथ है, हां इसके साथ थोड़ी बहुत काल्पनिकता आपने जरूर दिखलाने का प्रयास किया है.
और ये भी है कि.....
इस कहानी को हर सदस्य को एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए.....
आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी
कहानी जैसी हुई है और जो कह रही है वो आज के भारत की परिस्थितियों के सापेक्ष है. विधान के घर से भागने, साधुओं के साथ घुमने, वापस लौटने, विवाह होने, संस्था से जुड़ने, विवाह से भागने, राजनीती से जुड़ने और स्वयं से भागने की गज़ब की कथा है. अंतिम वाक्य में जनता जागृति.... कहानी के संकेत और प्रतीक कमाल है. आपका आभार एवं हार्दिक धन्यवाद इस कहानी का पाठक बनाने के लिए.
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