ला रहा रवि पालकी
खोल कर आकाश के पट
चल पड़ा है सारथी
खिल रहीं मदहोश कलियाँ
ला रहा रवि पालकी
भोर में ममता लुटाती
स्वर सजीली रागिनी
आ विराजा श्याम कागा
चल सखी-री जाग-री
प्रात का मंचन अनोखा
रश्मियाँ— अप्लावतीं
तृप्त तारक चल पड़े
विश्रांति की आगोश में
चाँदनी मुख ढक चली
सब आ गए यूं होश में
मौन सपनों को सजाने
चल पड़े सब भारती
खिल रहीं हैं पराग कनिका
गा रहे अलि राग में
शीतल मलय बहने लगी
झरने झरे अनुराग में
उद्घोष अपना कर रही
भारती उषा जल गागरी
छोर अंबर का खुला
बहने लगा रंग लाल सा
बिहाग कुल हँसने लगे
सूरज जला है मशाल सा
बुझ गए नभ दीप सारे
पनघट चलीं सब ग्वालिनी ॥
मौलिक व अप्रकाशित
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Comment
बहुत सुन्दर गीतिका छंद में लिखा गीत। भोर का सजीव चित्रण हो आया निगाहों के सामने रचना को पढ़ते हुए। बहुत खूब साधुवाद आ kalpna mishra bajpai . जी।
आदरणीय maharshi tripathi जी आपका आभार
मैं आपके पूछे गए प्रश्नों के अर्थ लिख रही हूँ
रश्मियाँ— अप्लावतीं,= सूर्य की किरणें सुनहरे रंग से भरी है
आप्लावित = भरा हुआ
विश्रांति =आराम कि शांति में
पराग कनिका= पुष्प के मध्य में पीले रंग के सूक्ष्म कण ।
आदरणीया कल्पना मिश्रा बाजपाई जी, मेरे कहे के अनुमोदन हेतु आभार.
यह भी है कि इस मंच की अन्यान्य प्रस्तुतियां एवं रचनाकार भी आपकी अमूल्य राय की प्रतीक्षा में है. कृपया उन पर अपनी अमूल्य राय देने की कृपा करे. सादर
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपका आभार
आदरणीय kanta roy जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीय Samar kabeer जी आपका सादर आभार
आदरणीय Manoj kumar Ahsaas जी आपने सही कहा कि सूर्य का रथ होता है और सारथी चलता हैं
खोल कर आकाश के पट
चल पड़ा है सारथी
खिल रहीं मदहोश कलियाँ
ला रहा रवि पालकी...........................इन पंक्तियों में सारथी का जिक्र हुआ है ,और ला रहा रवि का आशय है कि उसके साथ पालकी आ रही है । उम्मीद है आप समझ सकोगे /सादर आभार
आदरणीया कल्पना जी,इस सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें
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