For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ क्यों चुप हो?कुछ तो बोलो

मदर्स दे आने वाला है बस एक दिन के लिए 

--------------------------------------------------

माँ क्यों चुप हो कुछ बोलो तो  ?

अपने मन की पीड़ा को

मेरे आगे खोलो तो

माँ तुम क्यों चुप हो ?

 

कर्तव्य निष्ठ की बेदी बन

तुमने अपने को सुलगाया

धीरे-धीरे जली

सुवासित सदन बनाया

मंत्रों सी गुंजित होती

जब-जब आँगन में

मेरा मन लयबद्ध

गीत गाने लग जाता

मेरी मुसकानों में

ढूंढा था तुमने सुख अपना 

अब क्यों चुप हो ?

कुछ तो बोलो -----

अपनी दर्दीली चुप्पी को

मेरे आगे खोलो तो

माँ तुम .........................।

 

हर बुरी बला के आगे बनती

ढाल रही तू

मेरे हर छोटे कृत्यों पर हुई

निहाल बड़ी तू

उत्साह तुम्हीं से सीखा मैंने जीने का

वो हुनर तुम्हीं से आया मुझमें

जिज्ञासा की, थैली सीने का

अब क्यों चुप हो ?

कुछ बोलो तो

बेबस हुईं भावनाओं को

मेरे आगे खोलो तो

माँ तुम ...................... ।

 

माँ तेरे मधु-मय शब्द सुनाई

जब ना पड़ते

मेरे मन में शंकाओं के काले-

बादल घिरते

तू खुश होगी तब ही मैं जी पाऊँगा

तेरी ही आशीषों से जग में

कुछ नव कर पाऊँगा

इसलिए कह रहा हूँ तुम अपनी

मुसकान बिखेरो

हर पल हँसती रहो और

ममता से बोलो

अपनी सिथिल हुई वाणी को

मेरे आगे खोलो तो

माँ तुम ................... ।

 

मैंने जिस आँगन में अपने  

बच्चों को बड़ा किया

एक-एक पल उनपर

अपना वार दिया

सोचा था गरिमा लेकर बच्चे

उतरेंगे जग में

अपने संग मेरा भी ऊंचा नाम करेंगे

पर हाय!

विधाता तूने ये क्या कर डाला ?

इतने प्यारे बच्चों को

शैतान बना डाला अब

नारी की इज्जत है ना तो महतारी की

इसलिए बताओ बेटा

अब मैं क्या बोलूँ ?

अपनी चुप्पी कैसे तोड़ूँ

उनके कृत्यों ने अनगढ़ ताले

से मेरे मुख पर डाले हैं 

अब तुम्हीं बताओ

कैसे अपना मुख खोलूँ ?

लज्जित होकर जग में

कैसे  मैं जी पाती

अगर होता मारना हाथ

तो इस अपमानित जीवन को

स्वाहा कर जाती

या बन जाती अंधी अपने अंतर मन से

फिर मैं भी उनके कुकृत्यों पर

खूब सिहाती

रहती मगन और गीतों में

खिल-खिल जाती

पर अब ये सब कैसे होगा ??

मौलिक व अप्रकाशित 

कल्पना मिश्रा बाजपेई 

Views: 713

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kalpna mishra bajpai on May 2, 2015 at 9:58pm

आप सभी माननीय आदरणीय विशिष्ट जनों का हार्दिक आभार /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on May 2, 2015 at 9:58pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आप ने सही कहा लिखने में त्रुटि थी । आभार /सादर 

Comment by MAHIMA SHREE on May 1, 2015 at 7:36pm

भावपू्र्ण माँ को सर्मपित प्रस्तुति के लिए बधाई आपको

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 1, 2015 at 6:28pm
भावपूर्ण, सुन्दर रचना , आदरणीय सुश्री कल्पना बाजपेयी जी, बधाई , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 3:45pm

आदरणीया कल्पना जी , सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई ॥

झुलगाया   -  कहीं आप सुलगाया तो नहीं कहना चाहती थी ?

Comment by Samar kabeer on May 1, 2015 at 3:39pm
मोहतरमा कल्पना मिश्रा जी,आदाब, सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें |
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 1, 2015 at 12:24pm

अच्छे भाव डाले हैं आदरणीया . आपको  बधाई .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service