For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ /कान्ता राॅय

धूमिल होती भ्रांति सारी, गण-गणित मैं तोड़ रही हूँ
कलम डुबो कर नव दवात में, रूख समय का मोड़ रही हूँ
                          मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ......

नई भोर की चादर फैली, जन-जीवन झकझोर रही हूँ
धधक रही संग्राम की ज्वाला, सागर सी हिल-होर रही हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ......

टूटे हृदय के कण-कण सारे, चुन-चुन सारे जोड़ रही हूँ
उद्वेलित मन अब सम्भारी, विषय-जगत अब छोड़ रही हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ .....

मृदंग- मृदंग सा है मन मेरा, हरकाती सी शोर रही हूँ
क्षितिज रखी है मैने अंगुली, प्रत्यक्षित हिलकोर रहीं हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ .........

रोक सको दम गर है तुममें, प्रलय-प्रकाश जोड़ रहीं हूँ
आत्म स्वरों को रौंदने वालें नर - नारायण तोड़ रहीं हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ........

शक्ति प्रकृति ढोना होगा, मन मृगछाल ओढ रही हूँ
पग-पग रक्तबीज राजे है, अस्त्र अक्षर बल जोर रही हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ .........

सिंहासन डोले मनु रक्षक का, ठीकर सारे फोड़ रही हूँ
कोंपलें नई फूट रही है, निर्माण सेतु जोड़ रही हूँ
                          मैं दुर्गेश्वरी मै बोल रही हूँ .......
 


कान्ता राॅय
भोपाल

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 1432

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 10:45pm
आदरणीय ओमप्रकाश जी , मन में आया और लिख लिया मैने आपको अच्छा लगा यह जानकर लेखन सार्थक हुआ । आभार
Comment by Harash Mahajan on July 26, 2015 at 9:11pm

आदरणीय kanta roy जी आपकी इस  बा-कमाल  सृजनात्मक रचना में इस्तेमाल शुदद शब्दावली और उनमें उतरे आपके अहसास पढ़ कर आपकी कलम सशक्ता दर्शा गयी |

"सिंहासन डोले मनु रक्षक का
ठीकर सारे फोड़ रही हूँ
कोंपलें नई फूट रही है
निर्माण सेतु जोड़ रही हूँ

दुर्गेश्वरी मै बोल रही हूँ ......."...वाह !!


इस बेहतरीन रचना के लिए आपकी हार्दिल बधाई |


साभार |

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 26, 2015 at 8:31pm

जीवंत रचना, "कलम डूबो कर दावात में....समय रूख को मोड़ रही हूँ" हर शब्द में जैसे प्राण हैं| बधाई आपको कांता जी|

Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on July 26, 2015 at 7:57pm

मन के अंतर्द्वंदों का सजीव चित्रण बड़ी खूबसूरती से किया गया है ...सुश्री कांता रॉय जी आप  एक सिद्ध हस्त रचनाकार की दिशा में यूँ ही आगे बढ़ती रहें...बधाई

Comment by vijay nikore on July 26, 2015 at 4:29pm

बहुत गूढ़ , गंभीर चिंतन से सराबोर  रचना  के लिए हार्दिक बधाई।

छोटे-से सुझाव हैं, यदि आप को ठीक लगें तो प्रयोग कर सकती हैं...

१) //समय रूख को मोड़ रही हूँ// ... इसमें या तो "-" डाल सकती हैं, "समय-रुख को मोड़ रही हूँ"

      अथवा कह सकती हैं कि " समय का रुख मोड़ रही हूँ"

२)  जहाँ भी शब्द समुच्चयबोधक हैं, वहाँ ’_’ डाल सकती हैं ... उदाहरणार्थ..

      सागर-सी, विषय-जगत, आदि।

एक बहुत सुन्दर रचना के लिए आपको हृदयतल से बधाई।

Comment by Omprakash Kshatriya on July 26, 2015 at 4:16pm
आ कांता जी
प्रणाम ।
आप महादेवी वर्मा की तरह भावना प्रधान कविता भी लिखती है । यह जानकर प्रसन्नता हुई ।
बधाई ।
Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 2:13pm
प्रोत्साहन के लिये बहुत बहुत आभार डा. विजय शंकर जी ।
Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 2:12pm
मै सृजन में सीखने के क्रम में हूँ आदरणीय सुशील सरना जी । इस मंच पर हुई मेरी सक्रीयता ही मेरे लेखन को नये मुकाम की तरफ ले जा रही है । सार्थक रचनाओं को पढकर सटीक मार्गदर्शन आप सबके द्वारा प्राप्त कर कुछ लिख पा रही हूँ । मुझ अभ्यासी की रचना को प्रसंशित कर मुझ पर अनुग्रह करने के लिए तहे दिल से आभार आपको । मै दावात / दवात कर रही हूँ । आपने सही कहा है यह ।
Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 2:06pm
हा हा हा हा ....दिल बाग -बाग हो गया आपके इन अति उत्साह भरे प्रोत्साहन पाकर परम आदरणीया शशि जी । आभार आपको हृदयतल से
Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 2:04pm
आदरणीय पंकज जी , आपका निःशब्द में बहुत सारे प्रेरक शब्दों का समावेश हो गया है । आभार आपको दिल से

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय गिरीराज जी  बहुत बहुत धन्यवाद आपका  सादर "
12 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय तिलक जी  बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीकी से हर बात समझाने के लिए  सुझाव बहुत बेहतर…"
13 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें।"
27 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
38 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय दया राम भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाईयाँ "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय अजय भाई ,  अच्छी ग़ज़ल हुई है , आ. नीलेश भाई की सलाहें भी अच्छीं हैं , ध्यान …"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"वो अकेले में घृणित उदगार भी करते रहे जो दुकाने खोल सबसे प्यार भी करते रहे   नव दवा बीमार का…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीया रिचा जी , खूबसूरत ग़ज़ल  के लिए आपको हार्दिक बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. नीलेश भाई , हमेशा की तरह आपकी एक और अच्छी ग़ज़ल पढ़ने को मिली , ग़ज़ल के लिए आपको बधाई , गिरह …"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय शिज्जू भाई बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने , हार्दिक बधाई , गिरह का शेर अच्छा लगा , आपको बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , अच्छी ग़ज़ल कही कही है आपने , और चर्चा और सलाहें भी खूब हुई है , ग़ज़ल के लिए आपको…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. अजय जी, मुसहफी के शेर में जिस घटना का वर्णन है वह जल प्रलय की स्थिति पर है जब नूह या नोआ ने अपनी…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service