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दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ /कान्ता राॅय

धूमिल होती भ्रांति सारी, गण-गणित मैं तोड़ रही हूँ
कलम डुबो कर नव दवात में, रूख समय का मोड़ रही हूँ
                          मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ......

नई भोर की चादर फैली, जन-जीवन झकझोर रही हूँ
धधक रही संग्राम की ज्वाला, सागर सी हिल-होर रही हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ......

टूटे हृदय के कण-कण सारे, चुन-चुन सारे जोड़ रही हूँ
उद्वेलित मन अब सम्भारी, विषय-जगत अब छोड़ रही हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ .....

मृदंग- मृदंग सा है मन मेरा, हरकाती सी शोर रही हूँ
क्षितिज रखी है मैने अंगुली, प्रत्यक्षित हिलकोर रहीं हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ .........

रोक सको दम गर है तुममें, प्रलय-प्रकाश जोड़ रहीं हूँ
आत्म स्वरों को रौंदने वालें नर - नारायण तोड़ रहीं हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ........

शक्ति प्रकृति ढोना होगा, मन मृगछाल ओढ रही हूँ
पग-पग रक्तबीज राजे है, अस्त्र अक्षर बल जोर रही हूँ
                              मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ .........

सिंहासन डोले मनु रक्षक का, ठीकर सारे फोड़ रही हूँ
कोंपलें नई फूट रही है, निर्माण सेतु जोड़ रही हूँ
                          मैं दुर्गेश्वरी मै बोल रही हूँ .......
 


कान्ता राॅय
भोपाल

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 1421

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Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 2:02pm
आपको परम सुखद लगी रचना यह जानकर मेरा मनोबल बढा है आदरणीय इंजी आनंद सागर पाण्डेय जी । आभार आपको तहे दिल से ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on July 24, 2015 at 7:43pm
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आदरणीय सुश्री कांता रॉय जी, बधाई. सादर.
Comment by Sushil Sarna on July 24, 2015 at 4:20pm

धूमिल होती भ्रांति सारी
गण -गणित मैं तोड़ रही हूँ
कलम डूबो कर दावात में
समय रूख को मोड़ रही हूँ

दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ......

आदरणीय कान्ता रॉय जी प्रस्तुति में अंतर्द्वंद का बहुत सजीव चित्रण हुआ है … हार्दिक बधाई … मेरे विचार में दावात के स्थान पर दवात होनी चाहिए। बाकी अपने सृजन के बारे में आप अधिक समझती हैं। बहरहाल पुनः आपको इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by shashi bansal goyal on July 24, 2015 at 4:06pm
क्या बात !क्या बात !क्या बात !आद0 कांता जी हर विधा पर आपकी लेखनी कमाल दिखा रही है ।बहुत सुन्दर कविता बनी है । बधाई आपको ।
Comment by Pankaj Joshi on July 24, 2015 at 3:32pm

इतनी सुंदर भावपूर्ण कविता की तारीफ के लिए मेरे पास शब्द नहीं है । निःशब्द हूँ।

Comment by Er Anand Sagar Pandey on July 24, 2015 at 10:52am
ओ हो!
परमसुखद एवं हृदय स्पर्शी रचना l
बधाईयां स्वीकार करें l

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