For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- वाक़ई,ये ज़िन्दगी जंजाल है

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

क्या कहूँ तुमसे,ये मेरा हाल है
ख़ाली तर्कश,हाथ में इक ढाल है

रिश्तेदारों का ये इक जम्मे ग़फ़ीर
वाक़ई, ये ज़िन्दगी जंजाल है

क्यूँ रहे,इतनी ख़बर भी आप को
क्या महीना,कौन सा ये साल है

लग गई है उसको बीमारी अजीब
पास दौलत है मगर कंगाल है

न कोई तालीम है,न तरबियत
ये तो बस तहज़ीब का नक़्क़ाल है

जानवर की खाल दे देते हैं बस
और फिर ख़ाली,ये बैतुलमाल है

कुछ का कुछ आने लगा इसमें नज़र
आपके शीशे में देखो,बाल है

हज़रत-ए-"ख़ुशनूद" किस गिन्ती में हो
क़द्र उसकी है,जो माला माल है

शुक्र जितना भी करूँ कम है,"समर"
सर पे छत खाने को रोटी दाल है

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 720

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on August 2, 2015 at 10:55pm
जनाब डॉ आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 30, 2015 at 1:47pm

आदरणीय समर कबीरजी हमेशा की तरह यह आपकी उम्दा ग़ज़ल है ..लेकिन कठिन लगी मैं अभी कई शेरो पर उलझा हूँ ..फिर से पढ़ कर समझने की कोशिश करूंगा ..रचना पर प्रतिक्रियाओं और उनपर आपके जवाव से बहत कुछ सीखने को मिला खास रूप से न को २ मात्रिक लेने वाली बात यह जानकारी बिलकुल नयी लगी ..इस सुंदर रचना के लिए ह्रदय से बधाई रचना सादर 

Comment by Samar kabeer on July 29, 2015 at 4:14pm
जनाब शिज्जु शकूर जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुखन नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
Comment by Samar kabeer on July 29, 2015 at 4:12pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब, मतले के ऊला मिसरे की लय बेहतर है,सिर्फ सोचने का फ़र्क़ है,'न' अस्ल में 'नहीं' का मुख़फ़्फ़फ़(short form)है,जनाब 'महशर'रामपुरी का शैर है:-

"न हम समझे,न आप आए कहीं से
पसीना पोंछिये अपनी जबीं से"

ग़ज़ल में शिर्कत और सुखन नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
Comment by Samar kabeer on July 29, 2015 at 4:01pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब,मेरा ऐसा मानना है कि पाठक अगर कोई शैर पसंद करता है,या उसे समझना चाहता है तो उसे थोड़ी मिहनत तो करना ही चाहिये, ग़ज़ल में शिर्कत और सुखन नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
Comment by Samar kabeer on July 29, 2015 at 3:54pm
जनाब रवि शुक्ल जी आदाब, ग़ज़ल में शिर्कत और सुखन नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
Comment by Samar kabeer on July 29, 2015 at 3:52pm
जनाब राहुल डांगी जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुखन नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
Comment by Samar kabeer on July 29, 2015 at 3:50pm
जनाब हर्ष महाजन जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुखन नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
Comment by Samar kabeer on July 29, 2015 at 3:48pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब ग़ज़ल में शिर्कत और सुखन नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 27, 2015 at 8:44pm

वाह कमाल की ग़ज़ल है जनाब समर साहब दिली दाद कुबूल फरमायें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service