For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- "ग़ालिब" से माज़रत के साथ

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

इस तरफ़ भूल कर नहीं आती
ये ख़ुशी मेरे घर नहीं आती

आप रूठे हुए हैं जिस दिन से
"कोई उम्मीद बर नहीं आती"

बच निकलने की,ज़िन्दगी तुझसे
"कोई सूरत नज़र नहीं आती"

"मौत का एक दिन मुअय्यन है"
वक़्त से पैशतर नहीं आती

दिन में सोते हैं और पूछते हैं ?
"नींद क्यूँ रात भर नहीं आती"

देख लेती थी जो पस-ए-दीवार
वो नज़र,अब नज़र नहीं आती

"काबा किस मुंह से जाओगे",बोलो
शर्म तुमको "समर" नहीं आती

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 558

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on August 2, 2015 at 11:04pm
जनाब डॉ आशुतोष मिश्रा जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 2, 2015 at 11:02pm
जनाब रवि शुक्ल जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 2, 2015 at 11:01pm
जनाब सुशील सरना जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 2, 2015 at 11:00pm
जनाब राहुल डांगी जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 2, 2015 at 10:59pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 1, 2015 at 2:58pm

आदरणीय समर जी आपकी ग़ज़ले बेहद उम्दा होती हैं प्रस्तुत ग़ज़ल में बड़ी ही सहजता से बहुत कुछ कहा गया है .मौत का एक दिन मुअय्यन है"
वक़्त से पैशतर नहीं आती

दिन में सोते हैं और पूछते हैं ?
"नींद क्यूँ रात भर नहीं आती"

ये दो शेर इस ग़ज़ल के मेरे पसंदीदा शेर हैं 

.इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Ravi Shukla on July 30, 2015 at 2:21pm

आरणीय समर कबीर साहब

हर शेर पर बरबस ही वाह वाह निकल रही है

क्‍या खूब ग़ालिब साहब के मिसरो का इ्रस्‍तेमाल किया है

दिली दाद कुबूल कीजिये

Comment by Sushil Sarna on July 30, 2015 at 1:36pm

"मौत का एक दिन मुअय्यन है"
वक़्त से पैशतर नहीं आती

वाह इन खूबसूरत अहसासों से लबरेज़ इस ग़ज़ल के हर शे'र के लिए दिली दाद कबूल फरमाएं आदरणीय समर कबीर साहिब।

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 29, 2015 at 10:53pm
वाह वाह आदरणीय हर शे'र हेतु दाद कबूल करें।
"काबा किस मुंह से जाओगे",बोलो
शर्म तुमको "समर" नहीं आती

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 29, 2015 at 10:02pm

वाह वाह वाह 

क्या खूब ग़ज़ल हुई है वाह वाह वाह 

आदरणीय समर कबीर जी, अभिभूत हो रहा हूँ इन चार अशआर को पढ़ कर 

आप रूठे हुए हैं जिस दिन से
"कोई उम्मीद बर नहीं आती"

बच निकलने की,ज़िन्दगी तुझसे
"कोई सूरत नज़र नहीं आती"

"मौत का एक दिन मुअय्यन है"
वक़्त से पैशतर* नहीं आती                           *पहले 

दिन में सोते हैं और पूछते हैं ?
"नींद क्यूँ रात भर नहीं आती"

इस आनंद को शब्दों में बयाँ नहीं कर सकता हूँ. अशआर ऐसे हुए है जैसे  दुआयें कुबूल हो गई है .... 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service