For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- कुरआन पढ़कर आरती करता रहा - (मिथिलेश वामनकर)

2122--2122--2122--212

इस मकां को बामो-दर से एक घर करती रही

माँ मुसलसल काम अपना उम्र भर करती रही

 

धूप बारिश सर्दियों को मुख़्तसर करती रही

बीज की कुछ कोशिशें मिलकर शज़र करती रही

 

मेरे सिर पर हाथ फेरा था कभी तहजीब ने 

पुरअसर थी वो दुआ अब तक असर करती रही

 

दर्द देखा जो किसी का चलते-चलते रुक गए

साथ में ताउम्र इक आदत सफ़र करती रही.

 

जब तलक खामोशियाँ थी दिल मेरे काबू में था

बात निकली और दिल को बेखबर करती रही  

 

आदमी जैसे मशीनी दम-ब-दम होता रहा 

जिंदगी गुमसुम अकेले में बसर करती रही

 

या पलक उठती नहीं, या तो पलक झुकती नहीं 

वो निगाहें एक जादू रात भर करती रही 

 

मैं इधर कुरआन पढ़कर आरती करता रहा  

वो दुआ में पाठ गीता का उधर करती रही

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

 

Views: 739

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 5, 2015 at 6:54pm
आ० मिथिलेश सर!क्या कहने, गज़ल पर कुछ कहने को है ही नही! बस दाद ही दाद निकल रही है हर शेर पर!पूरी गज़ल बेहतरीन शेरों से सजी है,निश्चित ही ये कहना पड़ेगा के मेरी समझ से उस्ताद स्तर की ये गज़ल हुयी है!
खासकर ये दो शेर मैं आपने पास रख रहा हूँ!

इस मकां को बामो-दर से एक घर करती रही
माँ मुसलसल काम अपना उम्र भर करती रही

मेरे सिर पर हाथ फेरा था कभी तहजीब ने
पुरअसर थी वो दुआ अब तक असर करती रही

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2015 at 1:59pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , खूबसूरत मतले से शुरु हुई गज़ल आखिर तक बहुत सुन्दर हुई है है  , पूरी गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

मैं इधर कुरआन पढ़कर आरती करता रहा  

वो दुआ में पाठ गीता का उधर करती रही  -- हासिले गज़ल शेर के लिये अलग से बधाई आपको ।

Comment by नादिर ख़ान on August 5, 2015 at 1:09pm

इस मकां को बामो-दर से एक घर करती रही
माँ मुसलसल काम अपना उम्र भर करती रही......शानदार मतला कहा सर जी दिल को छू गया | 
दर्द देखा जो किसी का चलते-चलते रुक गए
साथ में ताउम्र इक आदत सफ़र करती रही..... वाह वाह सर क्या खूब कहा वैसे ये शिफत भी माँ से ही आती है|
मैं इधर कुरआन पढ़कर आरती करता रहा 
वो दुआ में पाठ गीता का उधर करती रही    बहुत खूब बहुत खूब बहुत खूब...
उम्दा ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद आदरणीय मिथिलेश जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 5, 2015 at 1:07pm

आदरणीय मिथिलेश जी आजकल आपकी कलम कमाल कर रही है ..एक से बढ़कर एक शानदार ग़ज़ल ..आप से निवेदन है कि उर्दू के शब्दों के अर्थ जैसा आप पहले करते थे अवश्य करा कीजिये ..इस रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 5, 2015 at 11:58am

आदरणीय रवि जी, ग़ज़ल के प्रयास पर आपकी सार्थक प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हूँ. आपका हृदय से आभारी हूँ. ये ग़ज़ल कई दिनों से लिखकर रखी थी. बार बार सुधार करता रहा हूँ लेकिन एक बिंदु पर आकर मुझे गुंजाइश ही नहीं लगी और लगी भी तो मैं उसे ठीक नहीं कर पा रहा था. यही सोचकर कि और बेहतर बनाने में विद्वतजन की राय अवश्‍य कारगर होगी, इसे प्रस्तुत कर दिया. आपका अमूल्य मार्गदर्शन मिला है तदनुसार पुनः प्रयास करता हूँ. ग़ज़ल को समय देकर सराहना, अमूल्य और सार्थक प्रतिक्रिया आपका बहुत बहुत धन्यवाद .

Comment by Ravi Shukla on August 5, 2015 at 11:42am

आरणीय मिथिलेश जी

पहले तो एक बहुत ही शानदार ग़ज़ल के लिये दिल से दाद कुबूल करिये ।

एक पाठक के तौर पर कहना चाहेंगे

कया रवानी है अशआर में । बहुत खूब ।

उसी पाठक के तौर पर शेर दर शेर बात करें तो मतले से जो सफर हुस्‍ने मतला और बाकी के तीन शेर तक चला तो उसमें

आपका अनुभव शेर दर शेर बयान होता चला गया  । बहुत खूब ।

उसके बाद के दो अशआर में  मिसरा ए सानी जितने खूबसूरत बन पड़े है उतनी कशिश हमें उला मे नहीं लगी । बेहतर को और बेहतर बनाने में विद्वतजन की राय अवश्‍य कारगर होगी ।

और

मैं इधर कुरआन पढ़कर आरती करता रहा  

वो दुआ में पाठ गीता का उधर करती रही

शानदार । यकजहती का आलम,  क्‍या कहने इस शेर को आखिरी शेर का दर्जा दीजिये क्‍योंकि इस शेर को कहने के बाद ग़जल में कुछ कहने के लिये नहीं बचता ।

अच्‍छी ग़ल़ल के लिये पुन: बहुत बहुत बधाई स्‍वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
23 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service