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आदरणीय मनोज भाई आपकी नज़्म ने दिल लूट लिया. पूरी नज़्म गुनगुनाते हुए बस झूम गया. आपको इस शानदार प्रस्तुति पर दिल से बधाई .... नज़्म इतनी शानदार हुई है कि अब कोई छोटा सा ऐब भी अखरेगा... इसलिए जहाँ गेयता भंग है उस पंक्ति में थोड़ा बदलाव कर बोल्ड किया है देख लीजियेगा. सादर
है पढ़ा दर्द की आँखों में तराना तेरा
तुझको मालूम हो शायद मेरा बेरंग सफ़र
मैंने हर लम्हा तेरी याद को पेशानी दी
तुझपे कुर्बान रही मेरी अकीदत की नज़र
मैं सुलगता हूँ तेरा साथ निभाने के लिए
हलाकि कुछ भी नही बाकि है जलने को इधर
ख़त्म होती हुई इक रस्म भी सांसो के लिए
जब भी हर लम्हा ढूंढती है तेरी राहगुजर
तुझको पा लेना किसी हाल में मुमकिन ही न था
तुझको खोने की तमन्नाये उठी फिर कैसे
जब थे मजबूर किसी बात की परवाह न थी
आज इन जमते हुए क़दमों को है डर कैसे
कितने बरसो से छुपाया है जिनको सीने में
हाय! वें ज़ख़्म नुमायां ना कहीं हो जाये
तुझसे इक लफ़्ज़ भी जुड़ता गया रुस्वाई का
इससे बेहतर है यहीं साँस दफ़न हो जाये
कितनी मजबूर हवाओ की निगहबानी है
जिनकी हर साँस में अहसास दरक जाते है
सर्द लगती है अंधेरो में झुलसती गर्मी
लफ़्ज़ जब भी तुझे छूते है बहक जाते है
इसलिए दिल की कोई बात बताने के लिए
अब मेरे दोस्त मेरे पास कोई राह नहीं
आखिरी बात तुझे कहने की तलब है ये
तू रहे खुश सदा जा मुझको तेरी चाह नहीं
हर तरफ मेरी अदावत की हवा चलती है
देख, आते है मेरा ज़ुर्म बताने वाले
तुझको मालूम है मेरी भी गुनहगारी का
ओ ज़माने को मुझे अच्छा बताने वाले
जी में आता है कोई आज फ़साना लिख दूँ
खत्म होने में नहीं आती है तेरी बातें
और अब सोचता हूँ सीधे बयानों में कहूँ
तेरी बातें ,तेरी बाते ,सभी तेरी बातें
बहुत बढ़िया भाई जी इस रचना पर ढेर सारी दुआएं
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