For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल इस्लाह के लिए (मनोज कुमार अहसास)

2122 2122 2122 212

लड़खड़ाहट चाहता हूँ मैं संभल जाने के बाद
धूप दिल में चुभ रही है दिन निकल जाने के बाद

सबसे पहला शेर था मैं एक ग़ज़ल की सोच का
और खारिज हो गया था लय बदल जाने के बाद

ठोस उस आधार पर लिपटी थी इक चिकनी परत
खुद से शिकवा कर रहे है हम फिसल जाने के बाद

खुश्क आँखों की ज़ुबा को यूँ समझ लो तुम सनम
ख़ाली बरतन जल रहा है सब उबल जाने के बाद

सर छुपाये फिर रहा था रौशनी में दर-ब-दर
चाँद सा खिलने लगा गम शाम ढल जाने के बाद

बेखुदी के दौर में भी कितने तुम महफूज़ थे
नाम रक्खा था छुपाकर सब उगल जाने के बाद

इसलिये ही हमने तेरी याद के आँसु लिखें
रूह इनमे छुप सकेगी जिस्म जल जाने के बाद

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 931

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on August 18, 2015 at 4:17pm
बहुत आभार आदरणीय विजय सर जी
आशीर्वाद बनाये रखें
सादर
Comment by vijay nikore on August 18, 2015 at 12:52pm

//सबसे पहला शेर था मैं एक ग़ज़ल की सोच का
और खारिज हो गया था लय बदल जाने के बाद

ठोस उस आधार पर लिपटी थी इक चिकनी परत
खुद से शिकवा कर रहे है हम फिसल जाने के बाद

खुश्क आँखों की ज़ुबा को यूँ समझ लो तुम सनम
ख़ाली बरतन जल रहा है सब उबल जाने के बाद//

सभी शेर एक-से-बढ़कर एक ! मज़ा आ गया । बधाई।

Comment by मनोज अहसास on August 17, 2015 at 7:31am
बहुत आभार सर
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 16, 2015 at 11:25pm

आदरणीय मनोज भाई शानदार ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं...

Comment by मनोज अहसास on August 16, 2015 at 8:14pm
आदरणीय रवि शुक्ला सर जी
बहुत बहुत आभार
सादर
Comment by Ravi Shukla on August 16, 2015 at 5:45pm
मोबाइल का प्रयोग कर रहे है इसलिए टंकण की त्रुटियों के लिए कृपया क्षमा करें
Comment by Ravi Shukla on August 16, 2015 at 5:43pm
आदरणीय मनोज जी बहुत खूब ग़ज़ल हुई है । खुश्क आंको वाला शेर क्या खूब हुआ है बिलकुल न्य चित्रण है बधाई क़ुबूल करें ।
Comment by मनोज अहसास on August 16, 2015 at 12:35pm
बहुत आभार आदरणीय धामी जी

सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 16, 2015 at 10:12am

आदरणीय मनोज भाई , सुन्दर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकारें .
दूसरे शेर में एक ग़ज़ल की जगह इक गजल कर ले तो प्रवाह अच्छा बनेगा . शेष शुभ शुभ ....

Comment by मनोज अहसास on August 15, 2015 at 2:08pm
आदरणीया कांता रॉय जी
बहुत आभार
चूँकि मंच पर उत्सव चल रहा तो ऎसे में सभी वहां बिज़ी है
आपने ग़ज़ल के लिए समय निकला
बहुत बहुत आभार
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
20 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service