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ग़ज़ल इस्लाह के लिए (मनोज कुमार अहसास)

2122 2122 2122 212

लड़खड़ाहट चाहता हूँ मैं संभल जाने के बाद
धूप दिल में चुभ रही है दिन निकल जाने के बाद

सबसे पहला शेर था मैं एक ग़ज़ल की सोच का
और खारिज हो गया था लय बदल जाने के बाद

ठोस उस आधार पर लिपटी थी इक चिकनी परत
खुद से शिकवा कर रहे है हम फिसल जाने के बाद

खुश्क आँखों की ज़ुबा को यूँ समझ लो तुम सनम
ख़ाली बरतन जल रहा है सब उबल जाने के बाद

सर छुपाये फिर रहा था रौशनी में दर-ब-दर
चाँद सा खिलने लगा गम शाम ढल जाने के बाद

बेखुदी के दौर में भी कितने तुम महफूज़ थे
नाम रक्खा था छुपाकर सब उगल जाने के बाद

इसलिये ही हमने तेरी याद के आँसु लिखें
रूह इनमे छुप सकेगी जिस्म जल जाने के बाद

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 898

Comment

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Comment by मनोज अहसास on August 18, 2015 at 4:17pm
बहुत आभार आदरणीय विजय सर जी
आशीर्वाद बनाये रखें
सादर
Comment by vijay nikore on August 18, 2015 at 12:52pm

//सबसे पहला शेर था मैं एक ग़ज़ल की सोच का
और खारिज हो गया था लय बदल जाने के बाद

ठोस उस आधार पर लिपटी थी इक चिकनी परत
खुद से शिकवा कर रहे है हम फिसल जाने के बाद

खुश्क आँखों की ज़ुबा को यूँ समझ लो तुम सनम
ख़ाली बरतन जल रहा है सब उबल जाने के बाद//

सभी शेर एक-से-बढ़कर एक ! मज़ा आ गया । बधाई।

Comment by मनोज अहसास on August 17, 2015 at 7:31am
बहुत आभार सर
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 16, 2015 at 11:25pm

आदरणीय मनोज भाई शानदार ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं...

Comment by मनोज अहसास on August 16, 2015 at 8:14pm
आदरणीय रवि शुक्ला सर जी
बहुत बहुत आभार
सादर
Comment by Ravi Shukla on August 16, 2015 at 5:45pm
मोबाइल का प्रयोग कर रहे है इसलिए टंकण की त्रुटियों के लिए कृपया क्षमा करें
Comment by Ravi Shukla on August 16, 2015 at 5:43pm
आदरणीय मनोज जी बहुत खूब ग़ज़ल हुई है । खुश्क आंको वाला शेर क्या खूब हुआ है बिलकुल न्य चित्रण है बधाई क़ुबूल करें ।
Comment by मनोज अहसास on August 16, 2015 at 12:35pm
बहुत आभार आदरणीय धामी जी

सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 16, 2015 at 10:12am

आदरणीय मनोज भाई , सुन्दर ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकारें .
दूसरे शेर में एक ग़ज़ल की जगह इक गजल कर ले तो प्रवाह अच्छा बनेगा . शेष शुभ शुभ ....

Comment by मनोज अहसास on August 15, 2015 at 2:08pm
आदरणीया कांता रॉय जी
बहुत आभार
चूँकि मंच पर उत्सव चल रहा तो ऎसे में सभी वहां बिज़ी है
आपने ग़ज़ल के लिए समय निकला
बहुत बहुत आभार
सादर

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