22---22---22---22 |
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सूखा है, घर के नल जैसा |
जीवन उजड़ा नक्सल जैसा |
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हुक्कामों से प्रश्न हुआ तो |
उत्तर होगा बोझल जैसा |
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तेरे आगे मैं ठहरा हूँ |
बिलकुल ड्रेसिंग टेबल जैसा |
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रिश्तों का आखेट हुआ है |
घर लगता है जंगल जैसा |
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गम जाड़ों-सा हाड़ कंपा दे |
भेजो सुख को कम्बल जैसा |
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सिर्फ मुकम्मल गज़लें लिखियें |
क्या होता है फुटकल जैसा ? |
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आप मुसाहिब बनिए भाई |
अपना जीवन लोकल जैसा |
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कितना विस्तृत पापा का मन |
बिलकुल बरगद पीपल जैसा |
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ख़बरों में फिर शोर हुआ है |
सहमी टूटी पायल जैसा |
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लाख हुनर तो तुम दिखलाओं |
हर दिन टीवी केबल जैसा |
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ढूंढ न पाया इक भी इंसा |
खोजी था मैं गूगल जैसा |
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देश बहुत ही छूटा पीछे |
शब्द उठा जब अंचल जैसा |
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ले डूबेगा कितने ही घर |
इस्टेटस ये सिंगल जैसा |
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डरता हूँ मैं उनका मुँह जब |
होता बहते काजल जैसा |
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बीज पकाकर खा जाते हो |
होनें भी दो कोंपल जैसा |
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कोशिश माज़ी से हटने की |
खुद को पाया निष्फल जैसा |
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तुम आई, लगता जीवन में |
आया है कुछ संबल जैसा |
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Comment
आदरणीय दिनेश भाई जी, किसी भी प्रयास पर आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया मेरे लिए सदैव उत्साहवर्धक हुआ करती है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर
आदरणीय गिरिराज सर, रिवायती अंदाज़ से अलग नए काफियों के प्रयोग की हिम्मत की है, आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर
आदरणीय हर्ष जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर
आदरणीय रवि जी, ग़ज़ल के इस प्रयोग पर मुखर अनुमोदन और आत्मीय प्रशंसा पाकर मुग्ध हूँ. यह भी अवश्य है कि ऐसे प्रयोगों की स्वीकार्यता के प्रति भय हमेशा बना रहता है. किन्तु आपका विंदुवार विस्तृत अनुमोदन और सार्थक प्रतिक्रिया पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. मार्गदर्शन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. सादर
आदरणीय पंकज जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.
आदरणीय मनोज भाई जी, ग़ज़ल के मुखर अनुमोदन, सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर
आदरणीय सुशील सरना सर, ग़ज़ल के प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका.
आदरनीय मिथिलेश भाई , छोटी बहर मे अच्छा प्रयास हुआ है , गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी छोटी बहर में आज फिर एक और बढ़िया ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें -----
"लाख हुनर तो तुम दिखलाओं
हर दिन टीवी केबल जैसा"...वाह क्या बात है........रोज़ मर्रा के प्रश्न
दिली दाद !! सादर !!
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