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मैं नदिया के पार क्षितिज के पास मिलूँगा

मैं नदिया के पार क्षितिज के पास मिलूंगा।
यादों की फुलवारी में बन सांस मिलूंगा।।

पास नहीं हम दोनों लेकिन सपने तो हैं।
जब सोचोगी मैं बनकर एहसास मिलूंगा।।

काजल की रेखाएं बनकर मैं आँखों में।
घुंघरू की आवाज़ें बनकर मैं पावों में।
प्रथम किरण के संग तेरी अरदास करूंगा।
यादों की फुलवारी में बन सांस मिलूंगा।।

तेज धूप से तुझे बचाता बादल बनकर।
रिमझिम रिमझिम झरता हुआ सा सावन बनकर।
प्रिय तुझसे मैं तो बनकर बरसात मिलूंगा।
यादों की फुलवारी में बन सांस मिलूंगा।।

गुन गुन गीत सुनाता भवँरा बन आऊंगा।
मैं पंकज हूँ मन की झील में खिल जाऊंगा।
ह्रदय से तेरे मैं बनकर उल्लास मिलूंगा।
यादों की फुलवारी में बन सांस मिलूंगा।।

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 15, 2015 at 10:16am
आदरणीय गिरिराज सर सादर अभिवादन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2015 at 9:41am

बहुत सुन्दर गीत रचना हुई है , आदरणीय हार्दिक बधाई आपको ।

कृपया ध्यान दे...

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