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आदरणीय आमोद जी गज़ल के लिये बधाई स्वीकार करें । एक बात तो हमे समझ आई वो ये कि आप शब्द को उसके मूल रूप में ही लिखे पढ़ते समय स्वयं ही मात्रा गिरा कर पढ़ा जा सकता है ।
मौत से वो रहा डरा ही है
जो भि डर मन में पाल रखते हैं ...... इसमें भि को सही रूप में लिखना होगा
वास्ता हि नही रहा उनका
बस खयाली पुआल रखते हैं ..... इसमे हि की टंकण त्रुटि है शायद । और हमने ख्याली पुलाव पढ़ा है पुआल शायद आपने काफिया मिलाने के लिये ले लिया है देख लें एक बार ।
धर्म समझा कभी नही वो है
मजहबी जो दीवाल रखते हैं .... इस शेर में दीवाल आम बोल चाल का शब्द है जबकि दीवार और उसकी सुविधा अनुसार दिवार का उपयोग ग़ज़लों में हो रहा यहां कितना उपयुक्त है और उस्ताद इस बारे मे कहेंगे तो हमारा भी संशय दूर हो सकेगा
दूसरे और तीसरे शेर में तकाबुले रदीफ है इसे भी दूर करने से ग़ज़ल की खुबसूरती बढ़ेगी आमोद जी ।
इसके आगे की बात बाकी जो
वो अदीबो पे टाल रखते है
सादर ।
Sahee kahaa achhaa kaha mitra
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