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बहर- 2122/1212 /22
(मन में जोभी मलाल रखते हैं)
जिंदगी जो मलाल रखते है
वो नही जो खयाल रखते है

वास्ता हि नही रहा उनका
बस खयाली पुआल रखते हैं

मौत से वो रहा डरा ही है
जो भि डर मन में पाल रखते हैं

हार जो भी गया हंसी पल है
बाद चाले सभाल रखते है

इश्क में ठोकरें लगी जिनको
प्यार वो बेमिसाल रखते है

धर्म समझा कभी नही वो है
मजहबी जो दीवाल रखते हैं

बात प्यारी हसीन होठों पर
प्यार में वो मिसाल रखते हैं
----------------------------------------------
मौलिक /अप्रकाशित
आमोद बिंदौरी

Views: 768

Comment

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Comment by Ravi Shukla on September 16, 2015 at 2:47pm

आदरणीय आमोद जी गज़ल के लिये बधाई स्‍वीकार करें । एक बात तो हमे समझ आई वो ये कि आप शब्‍द को उसके मूल रूप में ही लिखे पढ़ते समय स्‍वयं ही मात्रा गिरा कर पढ़ा जा सकता है ।

मौत से वो रहा डरा ही है
जो भि डर मन में पाल रखते हैं ...... इसमें भि को सही रूप में लिखना होगा

वास्ता हि नही रहा उनका
बस खयाली पुआल रखते हैं  ..... इसमे हि की टंकण त्रुटि है शायद । और हमने ख्‍याली पुलाव पढ़ा है पुआल शायद आपने काफिया मिलाने के लिये ले लिया है देख लें एक बार ।

धर्म समझा कभी नही वो है
मजहबी जो दीवाल रखते हैं .... इस शेर में दीवाल आम बोल चाल का शब्‍द है जबकि दीवार और उसकी सुविधा अनुसार दिवार का उपयोग ग़ज़लों में हो रहा यहां कितना उपयुक्‍त है और उस्‍ताद इस बारे मे कहेंगे तो हमारा भी संशय दूर हो सकेगा

दूसरे और तीसरे शेर में तकाबुले रदीफ है इसे भी दूर करने से ग़ज़ल की खुबसूरती बढ़ेगी आमोद जी ।

इसके आगे की बात बाकी जो

वो अदीबो पे टाल रखते है

सादर ।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 16, 2015 at 2:42pm
जी आ मुकेश जी
सादर आभार
Comment by MUKESH SRIVASTAVA on September 16, 2015 at 12:23pm

Sahee kahaa achhaa kaha mitra

Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 16, 2015 at 10:55am
सादर प्रणाम
गुणीजन से निवेदन अनुरोध है
के एक बार मेरी यह गजल चेक करी जाएं
और त्रुटियाँ बताई जाये

कृपया ध्यान दे...

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