रोज की तरह आज भी सुबह सुबह हो-हल्ला सुन कर में उठ गयाI घड़ी की तरफ देखा तो चार बज रहे थेI घर के सभी सदस्य अपने दोनों हाथोँ में पानी के बर्तन लेकर तैयार खड़े थेI और मेरे लिए भी पानी के बर्तन तैयार थेI हम सब लोग पानी भरने के लिए निकल पड़ेI 3 घंटे बाद पसीने से लथपथ दो दो बाल्टी पानी मिला तो सुकून की साँस लीI लाइन में खड़े खड़े पाँव अकड़ गए थे, इसलिए थोड़ा बैठकर राहत की साँस ली, फिर अपने घर की तरफ चल पड़ा, रास्ते में चौबे जी के घर के आगे पड़े अख़बार की हेडलाइन "मंगलग्रह पर मिला पानी" पढ़कर ख़ुशी से बाँछे खिल गईI और मन ही मन मंगलग्रह पर जाने की प्लानिंग करने लगाI
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
गिरिराज जी और प्रतिभा पांडे जी आप का बहुत बहुत धन्यवाद
सुन्दर कटाक्ष ! हार्दिक बधाई आपको ।
सीधी ,सरल ,सार्थक और कसी हुई रचना के लिए बधाई आदरणीय
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आप का बहुत बहुत धन्यवाद,
आदरणीय सुशील जी आप का बहुत बहुत धन्यवाद,
श्री राजेश कुमारी जी आप का बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत जबरदस्त कटाक्ष ....धरती का पानी तो खत्म हो गया चलो मंगल गृह ही चलें ...इस सुन्दर सशक्त लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई .
वर्तमान की जरूरत पर सुंदर कटाक्ष करती लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।
सुन्दर लघुकथा के लिये आपको बधाई ॥ |
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