औपचारिकता – ( लघुकथा )
शहर के मशहूर,युवा व्यवसायी और समाजसेवी राहुल जी का सडक हादसे में निधन हो गया!पार्थिव शरीर घर आ गया था!सारा शहर उमड पडा था!कोठी में पैर रखने को जगह नहीं थी!मातम का माहौल था!औरतों के रोने के अलावा अन्य कोई आवाज़ नहीं आरही थी! करीबी लोग दाह संस्कार की व्यवस्था में लगे थे!
राहुल जी के बहनोई विनोद जी भी मौजूद थे!मगर वे जब से आये थे , तभी से अपने मोबाइल को कान से लगाये हुए थे!अन्य सभी उपस्थिति लोगों ने माहौल की नज़ाकत को देखते हुए अपने मोबाइल बंद कर दिये थे! विनोद जी का मोबाइल लगातार बज़ रहाथा!सभी को अटपटा लग रहा था!राहुल जी के पिता जी को भी यह सब बडा नागवार लग रहा था!पर रिश्ते के लिहाज़ में चुप थे!
जब अर्थी उठाने के वक्त भी विनोद जी का मोबाइल बजा तो राहुल जी के पिताजी से चुप ना रहा गया ," विनोद बाबू, आप इस घर के दामाद हैं, आपने आने के लिये समय निकाला,बहुत मेहरबानी, अब आप प्रस्थान कीजिये , आपकी उपस्थिति की औपचारिकता पूरी हो गयी"!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय सतविंदर जी!लघुकथा को अपना अमूल्य समय दिया!मेरा उत्साह वर्धन किया!पुनः आभार!
हार्दिक आभार आदरणीया ओमप्रकाश क्षत्रिय जी !लघुकथा को समय देकर, पसंद कर, मेरी हौसला अफ़ज़ाई करने के लिये पुनः आभार!
हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा पांडे जी!लघुकथा की विषय वस्तु की सराहना करके आपने मेरे विचारों को सार्थक बना दिया!पुनः आभार!
आदरणीय तेज वीर जी आप की लघुकथा ने एक मार्मिक स्थल को छुआ है. इस संवेदनशील लघुकथा के लिए मेरी बधाई स्वीकार करे.
इस प्रकार की संवेदनहीनता आज अक्सर देखी जाती है ,इसको अपनी कथा का विषय बनाकर आपने एक सार्थक सन्देश दिया है ,बधाई आपको इस रचना पर आदरणीय तेज वीर जी
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