१२२ /१२२ /१२२ /१२२
उजाले बहाये धधक करके रोये
फ़लक पे सितारे चमक करके रोये।
कोई चाँदनी बेवफ़ा तो थी वर्ना
क्यूँ सीना जलाये दहक करके रोये।
नमक इश्क का पी बहुत थीं ये आँखें
अदा अब ये सारे नमक करके रोये।
जो गम हम मिटाने चले जाम उठाने
तो पैमाँ भराये छलक करके रोये।
तेरी खुश्बुओं से घर आँगन भराया
शजर फूल सारे महक करके रोये।
सलामत रहे तू दुआ है हमारी
ये सुन गम के मारे फ़फक करके रोये।
बहुत शादमां थे गले से लगाकर
ता उम्र अब शरारे दहक करके रोये।
है सुनता बहुत आसमां भी हमारी
घटा घिर-घिराये चमक करके रोये।
मुहब्बत सफर है, नहीं कोई मंजिल
यही पा हमारे टपक करके रोये।
वफ़ा का हमारी सिला ये मिला है
नजर और नजारे फ़लक कर के रोये।
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मौलिक व् अप्रकाशित © ‘जान’ गोरखपुरी
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Comment
तेरी खुश्बुओं से घर आँगन भराया
शजर फूल सारे महक करके रोये।.........दिल को बड़ी अपनी सी लगी , ये सभी पंक्तियाँ। बतौर पाठक तकनीकों से अनजान। पंक्तियाँ मन को भा जाती है तो पढ़ने का मज़ा मिल जाता है। बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए आपकोkrishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी।
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