For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल.................जान' गोरखपुरी

122 122 122 122

अजब इक तमाशा है ये ज़िन्दगी भी।
बिछड़ना है सबकुछ मगर दिल्लगी भी।।

बहुत बेमुरव्वत है तासीर दिल की।
मिली जितनी उतनी बढ़ी तिश्नगी भी।।

जमीं हो या आँखें...ख़ुशी हो या हो गम।
है अच्छी नही देर तक खुश्कगी* भी।। (सूखापन)

कहानी मुहब्बत की है तो पुरानी।
नयी सी मगर इसमें है ताजगी भी।।

न समझा कोई हुस्नो-इश्को-वफ़ा पर।
हरिक को है पर इनसे बावस्तगी* भी।। (सम्बद्धता)

ये माना कि बरबादियाँ भी बहुत की।
मगर दुनिया को दी है शाइस्तगी* भी।। (शिष्टता/सभ्यता)

मेरा दिल भी बच्चे का दिल हो कि जैसे।
है पल में हँसे पल में अफ़सुर्दगी* भी।। (उदासी)

दिले-बेकरॉ* मुफ़्त पाया; है माँगे.. (असीमित दिल)
वो अब साथ खूने-जिगर चश्मगी* भी।। (मुँहदिखाई)

मैं हूँ सिर्फ तेरा ये सुनकर कहे है..
तेरी ज़िन्दगी है कोई ज़िन्दगी भी?

हूँ दुनिया में मशहूर इनायत से तेरी।
बड़े काम की शय है आवारगी भी।।

करम कैसे हो "जान" उसका?जो तुझसे..
सर अपना झुकाके न हो बन्दगी भी।।

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 509

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on November 23, 2015 at 6:30pm
हार्दिक आभार आ.शिज्जू सर।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on November 23, 2015 at 6:29pm
बेहद शुक्रिया आ.मिथिलेश सर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 23, 2015 at 12:50pm
बहुत बढ़िया कृष्ण मिश्रा जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 23, 2015 at 10:09am
आदरणीय कृष्ण भाई जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है दिल से दाद कुबूल फरमाएं।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on November 20, 2015 at 3:30pm
बेहद शुक्रिया आ.गिरिराज सर।ग़ज़ल आपको पसंद आई जानकर आस्वस्त हुआ।हार्दिक आभार आ.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 20, 2015 at 7:46am

प्रिय अनुज , बहुत बढ़िया गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें , ये दो शेर खूब पसंद आये ॥
बहुत बेमुरव्वत है तासीर दिल की।
मिली जितनी उतनी बढ़ी तिश्नगी भी।।

जमीं हो या आँखें...ख़ुशी हो या हो गम।
है अच्छी नही देर तक खुश्कगी* भी।।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
3 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
14 hours ago
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service