चलते रहना रुकना मत।
पथ चाहे हो पथरीला ,
पर्वत हो चाहे टीला ,
सघन समूचा जंगल हो ,
गूढ़ समुंदर हो नीला ,
वीरों सा बढ़ते रहना।
झुकना मत।
चपला चमके आँधी आये,
घनघोर घटा नभ छा जाये,
हो काली रात अंधेरी भी,
सागर में धरा समा जाये,
दीपक सा जलते रहना ,
बुझना मत ।
बन सजग देश के प्रहरी तुम,
रख लक्ष्य साधना गहरी तुम,
नील गगन में चमक उठो,
बनकर चमक सुनहरी तुम,
निज सपनों को गढ़ते रहना,
रुकना मत।
अजय शर्मा " अज्ञात "
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आप समस्त आदरणीय कवियों का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
आदरणीय अजय जी, सकरात्मक ऊर्जा से लबरेज सुन्दर रचना हुई है, बहुत बहुत बधाई इस अभिव्यक्ति पर.
चलते रहना रुकना मत।
पथ चाहे हो पथरीला ,
पर्वत हो चाहे टीला ,
सघन समूचा जंगल हो ,
गूढ़ समुंदर हो नीला ,
वीरों सा बढ़ते रहना।---- आत्मबल को सम्बल देती हुई ये रचना बहुत ही सार्थक बानी है। बधाई आपको आदरणीय अजय कुमार जी।
आदरणीय अजय जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुई है. इस प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई
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