मन में हो विश्वास अगर,दीप आस के जलते हैं,
कीचड़,मटमैले जल में भी,फूल कमल के खिलते हैं।
घोर घने अंधियारे में ही, तारे झिलमिल करते हैं।
पत्थर तो बस पत्थर है, पत्थर का कोई मोल नहीं,
दुख सहकर मूरत बनता है,होता है अनमोल वही,
धूप,दीप,नैवेद्य चढ़ा,लाखों सिर सजदे करते हैं।
मन में हो विश्वास अगर,दीप आस के जलते हैं।
अपना अस्तित्व बचाने को,खाक में दाना मिलता है,
सर्दी,बारिश की बूंदें,गर्मी की चुभन को सहता है,
हृदय चीर कर धरती का तब कोमल पौधे बनते हैं।
मन में हो विश्वास अगर,दीप आस के जलते हैं।
जीवन के पथ दुर्गम हैं, दुर्गम पथ के वीर बनो,
ऊँची चोटी के शिखर बनो,बहती नदिया के नीर बनो,
अविराम,निरंतर मानुष ही, फल जीवन के चखते हैं,
मन में हो विश्वास अगर,दीप आस के जलते हैं।
अजय शर्मा " अज्ञात "
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मिथलेश जी एवं दिग्विजय जी अनेकानेक धन्यवाद।
आदरणीय अजय जी बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
जीवन के पथ दुर्गम हैं, दुर्गम पथ के वीर बनो,
ऊँची चोटी के शिखर बनो,बहती नदिया के नीर बनो,
अविराम,निरंतर मानुष ही, फल जीवन के चखते हैं,
मन में हो विश्वास अगर,दीप आस के जलते हैं।
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सुन्दर रचना हुई हैं बधाई स्वीकार करें ।
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