For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धूप की तकसीम में कुछ तो हुआ है देखना-- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

2122---2122---2122---212

धूप की तकसीम में कुछ तो हुआ है देखना

आज फिर सूरज सवालों में घिरा है देखना

 

नीम के ये जर्द पत्ते आंसुओं-से झर गए

इस फिज़ा की आँख में कंकड़ फंसा है, देखना

 

बस शिकायत हाय, माना आप ही सच्चे मगर

जिंदगी में कुछ बुरा तो कुछ भला है, देखना

 

टहनियों के पोर में कुछ ख़ाब बूंदों के सजे

इक तलातुम से शज़र फिर से हिला है, देखना

 

छोड़ ए.सी., धूप में इक पेड़ के नीचे चलो 

आपको गर प्याज-रोटी का मज़ा है, देखना

 

आज सारे सांप बांबी से नदारद हो गए

नौ निजामत में यहाँ किसका पता है देखना?

 

बारिशों की आँख में गर कोहरा छा जाए तो 

बादलों की हर गली में क्या घटा है देखना?

 

खुशनुमा सी एक बस्ती आज बस्तर हो गई

खून से किसका मुकद्दर कब खिला है देखना?

 

खिन्न पत्थर हो गए हैं, खुल रही हैं मुट्ठियाँ

कांच का घर रात भर से क्यों सजा है देखना?

 

नील घाटी थी जो कल तक, सुर्ख परबत हो गई

जिंदगी गिरगिट सरीखी, क्या बला है देखना?

 

हो खता इस पार की या हो खता उस पार की

सरहदों पे खून ग़ज़लों का बहा है देखना.

 

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 566

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 22, 2015 at 11:31pm

आदरणीय  नादिर ख़ान  सर,  आप जैसे ग़ज़लगो से दाद पाना मेरे लिए मायने रखता है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 22, 2015 at 11:30pm

आदरणीय बागी सर, ग़ज़ल पर आपका मुखर अनुमोदन पाकर दिल खुश हो गया. ग़ज़ल की सराहना मार्गदर्शन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. आपके मार्गदर्शन अनुसार सुधार करता हूँ. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 22, 2015 at 11:29pm

आदरणीया कांता जी,  ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 22, 2015 at 11:28pm

आदरणीय शिज्जू भाई जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई जानकार ख़ुशी हुई. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. तलातुम वाले शेर पर पुनः प्रयास करता हूँ सादर 

Comment by नादिर ख़ान on October 22, 2015 at 10:36pm

खुशनुमा सी एक बस्ती आज बस्तर हो गई

खून से किसका मुकद्दर कब खिला है देखना?

 

खिन्न पत्थर हो गए हैं, खुल रही हैं मुट्ठियाँ

कांच का घर रात भर से क्यों सजा है देखना?

आदरणीय मिथिलेश जी आप की हर रचना कमाल की होती है ।

कठिन शेर भी आप बड़ी आसानी से खूबसूरती से कह जाते हैं ।वाह भाई वाह ....


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 22, 2015 at 8:56am

आय हाय हाय, पूरी ग़ज़ल तरन्नुम में गुनगुना गया, सच कहूँ तो आनंद आ गया, 

//खिन्न पत्थर हो गए हैं, खुल रही हैं मुट्ठियाँ
कांच का घर रात भर यूँ क्यों सजा है देखना?//क्या बात है बहुत ही सुन्दर.

आदरणीय मिथिलेश जी, अंतिम शेर पर अलग से दाद देता हूँ, बहुत बहुत बधाई इस खुबसूरत ग़ज़ल पर.

Comment by kanta roy on October 21, 2015 at 11:38pm

धूप की तकसीम में कुछ तो हुआ है देखना
आज फिर सूरज सवालों में घिरा है देखना।।।। वाह ! क्या खूब शेर हुई है ये। लाजवाब !! बहुत खूब ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय मिथिलेश जी। बधाई हो !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 21, 2015 at 8:01pm
बहुत बढ़िया आदरणीय मिथिलेशजी सादर बधाई आपको। एक बात आपसे साझा करना चाहूँगा आमतौर पर समुद्री तूफान को तलातुम कहा जाता है इस लिहाज से तलातुम वाले शेर में और अच्छी बात कही जा सकती है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 21, 2015 at 4:37pm

निवेदन है कि कृपया मतला इस तरह पढ़ा जावे-

धूप की तकसीम में कुछ तो हुआ है देखना

आज फिर सूरज सवालों से घिरा है देखना

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service