For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

22—22—22—22—22—2

 

गुलशन में फिर भौंरा आया,  बढ़िया है

फूलों से काटों का नाता,  बढ़िया है

 

आज उफ़क तक सरसों देखी, दिल बोला-

नीली चूनर, पीला लंहगा,  बढ़िया है

 

मकसद अपना हँसकर वो बतलाते ये

पैसा पैसा केवल पैसा, बढ़िया है

 

चाहत के पिंजरे में हमने कैद रखी

छोटी सी संतोषी चिड़िया, बढ़िया है

 

बादल ने जब दिल पर खंजर फेंके तब

सब कहते है सावन आया, बढ़िया है

 

एक जगह जब पानी ठहरे, डरता हूँ

पत्तों से फिर पानी फिसला, बढ़िया है

 

बूंदों की बारात दुआरे से बोली

खेतों का हरियाला बन्ना, बढ़िया है

 

अंधियारे से रात मिलन को आतुर थी

सूरज थोड़ा ठिठका ठहरा, बढ़िया है

 

उसने फिर दीवान सुनाया, क्या कहते?

सिर्फ हमारे मुंह से निकला- बढ़िया है

 

कहने को बस कहना है, तो बेहतर ये

अपनी जेब में रख लो अपना बढ़िया है

 

------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
------------------------------------------------------------

Views: 856

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vijay Joshi on January 30, 2016 at 9:32pm
आपका भर पूरा जीवन प्रशानिक सेवा के बाद भी साहित्य को समर्पित है। जानकर ख़ुशी हुई।
विजय जोशी '
शीतांशु'

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 1, 2015 at 12:27am

आदरणीय  Ganga Dhar Sharma 'Hindustan'  जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 1, 2015 at 12:26am

आदरणीय  Dr Ashutosh Mishra जी  ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार

Comment by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on October 31, 2015 at 10:55pm
मिथिलेश जी ! बढ़िया ...बहुत बढ़िया...यकीनन बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल...इसके लिए बढ़िया सी बधाई स्वीकार करें...
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 30, 2015 at 5:06pm

आदरणीय मिथिलेश जी आज तो आपकी कई ग़ज़लें पढने का मौका मिला ..एक से बढ़कर एक रचना ..इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधायी स्वीकार करें सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 12:51pm

आदरणीय नादिर सर, आप जैसे गज़लकार से दाद पाना मेरे लिए मायने रखता है, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 12:51pm

आदरणीय गिरिराज सर, आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 12:50pm

आदरणीय पंकज जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 12:50pm

हा हा हा ........ आदरणीय नीरज जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 12:49pm

आदरणीय गोपाल सर, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आपकी ग़ज़ल में रदीफ़, काफ़िया और बह्र की दृष्टि से प्रयास सधा हुआ है। इसे प्रशंसनीय अभ्यास माना जा…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"सादर , अभिवादन आदरणीय।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"नफ़रतों की आँधियों में प्यार भी करते रहे।शांति का हर ओर से आधार भी करते रहे।१। *दुश्मनों के काल को…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"जय-जय"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"स्वागतम"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Saurabh Pandey's blog post गजल - जा तुझे इश्क हो // -- सौरभ
"आ. सौरभ सर श्राप है या दुआ जा तुझे इश्क़ हो मुझ को तो हो गया जा तुझे इश्क़ हो..इस ग़ज़ल के…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. नाथ जी "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. विजय जी "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. अजय जी "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. समर सर. पता नहीं मैं इस ग़ज़ल पर आई टिप्पणियाँ पढ़ ही नहीं पाया "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की- लगती हैं बेरंग सारी तितलियाँ तेरे बिना
"धन्यवाद आ. रचना जी "
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service