अधूरी ख्वाहिशें - ( लघुकथा ) -
कीर्ति के शिखर पर बैठे एक खिलाड़ी ने जब सन्यास ले लिया तो उसके कुछ समय पश्चात. पत्रकार सुधीर जिज्ञासा वश ढूंढता हुआ, उसका साक्षात्कार लेने, उसके पैत्रिक गॉव जा पहुंचा!गॉव के बाहर ही एक व्यक्ति मैले कुचैले वस्त्रों में सिर पर गोबर का टोकरा ले जाता दिखा!सुधीर ने उससे भूतपूर्व बालीबाल खिलाडी रघुराज सिंह का घर पूछा!
"क्या करोगे भाई उसके घर जाकर"!
“मुझे उनका साक्षात्कार लेना है"!
"एक गुमनाम आदमी का साक्षात्कार,क्यों मज़ाक करते हो"!
"यह मज़ाक नहीं,हक़ीक़त है,देखिये मेरा परिचय पत्र,मैं दिल्ली से आया हूं"!
"मुझे तुम्हारे परिचय पत्र में कोई रुचि नहीं है, जब तुम खुद ही उस व्यक्ति को नहीं पहचानते तो कैसा साक्षात्कार"!
"आपकी बात मेरी समझ में आई नहीं"!
"जिस शख्स की तुम्हें दरकार है,वह तुम्हारे सामने खडा है"!
सुधीर को एक पल को ज़ोर का झटका लगा!उसे यकीन नहीं हुआ कि यह वही खिलाडी है जिसका किसी ज़माने में डंका पुजता था!
सुधीर यकायक अतीत में खो गया !रघुराज सिंह एक ज़माने में भारत के जाने माने बालीबाल खिलाडी थे! ज़िले की,राज्य की और देश की टीम का कई बार प्रतिनिधित्व और नेत्रत्व भी किया!ढेरों पुरुस्कार,प्रशस्तिपत्र और सम्मान पत्र मिले!इतना शानदार खिलाडी होने के कारण आये दिन उनकी जीवनी और चित्र पत्रिकाओं में छपते रहते थे!कितनी ही कंपनियों के नौकरी के लिये आफ़र आते थे! एक बार राष्ट्रपति द्वारा उनको देश के सर्वश्रेष्ठ बालीबाल खिलाडी का सम्मान मिला!
"सिंह साहब क्या आपसे यह जान सकता हूं कि आपकी इस दशा के लिये कौन जिम्मेवार है"!
"हम खुद ही जिम्मेवार हैं"!
"वह कैसे, थोडा स्पष्ट करेंगे"!
“एक कारण तो यह था कि मेरे ऊपर आई . ए. एस. करने का भूत सवार था अतः अन्य किसी नौकरी का आफ़र स्वीकार नहीं किया!दूसरा कारण यह कि ज़्यादातर खिलाडी जब तक खेल से जुडे होते हैं, आगे पीछे की नहीं सोचते,केवल खेलना ही उद्देश्य होता है,लेकिन जब धीरे धीरे उम्र बढती है तो खेल भी उतार पर आता है!उन हालात का सामना जीवन में हर खिलाडी को करना पडता है!कुछ समझदार खिलाडी यह स्थिति आने से पहले ही अपने को स्थापित कर लेते हैं!मगर कुछ को इस का समय रहते आभास नहीं होता!उनके लिये यह स्थिति एक डरावना स्वप्न साबित होती है! और शेष जीवन में उनको सिवाय पश्चाताप और पछतावे के कुछ प्राप्त नहीं होता “!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी,कांता रॉय जी,राजेश कुमारी जी, डॉ आशुतोश मिश्रा जी !आपलोगों ने लघुकथा को समय दिया, सराहा, विवेचना की!पुनः आभार!
आदरणीय वीर सिंह जी ..आपकी रचना से सभी खिलाडियों को नसीहत लेनी चाहिए. इस सन्देश देती रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
कभी कभी वक़्त पर न लिए फेंसले जीवन भर के लिए एक टीस छोड़ देते हैं और वक़्त निकल जाता है ऐसा ही कुछ इस लघु कथा के नायक के साथ हुआ |और ये तो हमारे देश के खिलाड़ियों का दुर्भाग्य ही रहा की जब तक चमके तो खूब चमके फिर अँधेरे में गुम हो जाते हैं फिर कोई नहीं पूछता उनको \
बहुत बहुत बधाई आ० तेजवीर जी |
जिंदगी में किये गए कई फैसले भविस्य में अक्सर गलत साबित भी होते है। वास्तविक जीवन में देखें तो कई संन्यास लिए हुई खिलाड़ी या पब्लिक फिगर लाइम लाइट से दूर रहने के बाद बहुत ही शिद्दत से वापसी करना चाहते है। जिंदगी की कसौटी पर यथार्थ के बेहद करीब ये आपकी लघुकथा हुई है आदरणीय तेजवीर जी। बधाई स्वीकार करें।
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