"सुगना, क्या यह सच है कि दशहरे की रात को तुमने चौधरी जगन्नाथ के तीनों बेटों की खलिहान में सोते हुए कुल्हाडी से हत्या की थी"!
"बिलकुल सच है ज़ज़ साब,मैंने ही मारा उन तीनों राक्षसों को , रावण के साथ उनका मरना भी ज़रूरी था, "!
"तुम्हें अपनी सफ़ाई में कुछ कहना है"!
"ज़ज़ साब, उन तीनों दरिंदों ने उसी खलिहान में मुझे भूसा लेने बुलाया था और भरी दोपहरी में मेरी इज़्ज़त तार तार कर दी!मेरा बापू चौधरी के पास शिकायत करने गया तो चौधरी बोला कि सुगना के बापू जब पेड पर फ़ल लदे होते हैं तो बालकों का मन ललचा जाता है, तेरे फ़लों की कीमत मिल जायेगी"!
"तो तुमने कानून अपने हाथ में क्यों ले लिया"!
"ज़ज़ साब, हम थाने भी गये थे, दरोगा और डॉक्टर दौनों ने डाक्टरी जांच के बहाने वही सब किया,बाद में चौधरी से पैसे खा लिये, मामला रफ़ा दफ़ा, गरीब की कोई नहीं सुनता,साब ,उसी दिन से मेरे मन में ज्वालामुखी सुलग रहा था"!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा जी!
अंधेर नगरी चौपट व्यवस्था को बयां करती सार्थक कथा ,बहुत कसा हुआ शिल्प ,बधाई आपको इस रचना पर आदरणीय तेजवीर सिंह जी
हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी!आप ने लघुकथा को अपना अमूल्य समय दिया!उसे पसंद किया और इतने खूबसूरत अंदाज़ में विवेचना की!मन गदगद हो गया!पुनः आभार!
क़ानून को हाथ में लेने की जरूरत क्यूँ पड़ती है क्या इसका कोई जबाब है क़ानून के पास ..स्त्रियों की रक्षा कोई नहीं करेगा तो अपनी रक्षा खुद करनी पड़ेगी आपकी लघु कथा की इस नायिका के इस कदम की मैं सराहना करती हूँ यही शक्ति चाहिए आज की युवतियों और नारियों में |बहुत बहुत- बधाई आ० तेजवीर सिंह जी|
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी,राहिला जी,ओमप्रकाश जी,अर्चना त्रिपाठी जी!आप लोगों ने अमूल्य समय दिया!लघुकथा को सराहा!पुनः आभार!
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