For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज्वालामुखी – ( लघुकथा ) -

 "सुगना, क्या यह सच है कि दशहरे की रात को तुमने चौधरी जगन्नाथ के तीनों बेटों की खलिहान में सोते हुए कुल्हाडी से हत्या की थी"!

"बिलकुल सच है ज़ज़ साब,मैंने ही मारा उन तीनों राक्षसों को , रावण के साथ उनका  मरना भी ज़रूरी था, "!

"तुम्हें अपनी सफ़ाई में कुछ कहना है"!

"ज़ज़ साब, उन तीनों दरिंदों ने उसी खलिहान में  मुझे भूसा लेने बुलाया था और भरी दोपहरी में मेरी इज़्ज़त तार तार कर दी!मेरा बापू चौधरी के पास शिकायत करने गया तो चौधरी बोला कि सुगना के बापू जब पेड पर फ़ल लदे होते हैं तो बालकों का मन ललचा जाता है, तेरे फ़लों की कीमत मिल जायेगी"!

"तो तुमने कानून अपने हाथ में क्यों ले लिया"!

"ज़ज़ साब, हम थाने भी गये थे, दरोगा और डॉक्टर दौनों ने  डाक्टरी जांच के बहाने वही सब किया,बाद में चौधरी से पैसे खा लिये, मामला रफ़ा दफ़ा, गरीब की कोई नहीं सुनता,साब ,उसी दिन से मेरे मन में ज्वालामुखी सुलग रहा था"!

 मौलिक व अप्रकाशित

Views: 612

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on November 4, 2015 at 5:23pm

हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा जी!

Comment by pratibha pande on October 29, 2015 at 8:24am

अंधेर नगरी चौपट व्यवस्था को बयां करती सार्थक कथा ,बहुत कसा हुआ शिल्प ,बधाई आपको इस रचना पर आदरणीय तेजवीर सिंह जी 

Comment by TEJ VEER SINGH on October 28, 2015 at 10:47am

हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी!आप ने लघुकथा को अपना अमूल्य समय दिया!उसे पसंद किया और इतने खूबसूरत अंदाज़ में विवेचना की!मन गदगद हो गया!पुनः आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 27, 2015 at 9:25pm

क़ानून को हाथ में लेने की जरूरत क्यूँ पड़ती है  क्या इसका कोई जबाब है क़ानून के पास ..स्त्रियों की रक्षा कोई नहीं करेगा तो अपनी रक्षा खुद करनी पड़ेगी आपकी लघु कथा की इस नायिका के इस कदम की मैं सराहना करती हूँ यही शक्ति चाहिए आज की युवतियों और नारियों में |बहुत बहुत- बधाई आ० तेजवीर सिंह जी| 

Comment by TEJ VEER SINGH on October 26, 2015 at 10:06pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी,राहिला जी,ओमप्रकाश जी,अर्चना त्रिपाठी जी!आप लोगों ने अमूल्य समय दिया!लघुकथा को सराहा!पुनः आभार!

Comment by Omprakash Kshatriya on October 26, 2015 at 9:05pm
आदरणीय तेज वीर जी आप की लघुकथा बहुत ही उम्दा हुई है । आप की लघुकथा में बेबसी का शानदार चित्रण हुआ है । मेरी बधाई स्वीकार करे ।
Comment by Archana Tripathi on October 26, 2015 at 8:48pm
अत्यंत उम्दा बेबसी का चित्रण ! स्तय हैं ज्वालामुखी कभी तो फटेगा ही ।हार्दिक बधाई आदरणीय तेज वीर सिंह जी ।
Comment by Rahila on October 26, 2015 at 8:37pm
बहुत खूब रचना हुई आद. तेज वीर सिंह जी! बुराई का अंत ही दशहरे की सही परिभाषा है । और यहां भी बुराई का अंत हुआ । बहुत बधाई आपको सार्थक लेखन के लिये।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 26, 2015 at 8:13pm
बहुत अच्छे कथानक पर उत्तम सृजन आदरणीय Tej Veer Singh जी। तहे दिल बहुत बहुत बधाई आपको। "अंतिम लघु पंक्ति आपकी समर्थ लेखनी से और अधिक धारदार हो सकती है।"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service