गुरु दक्षिणा – (लघुकथा ) -
विश्व विद्यालय के प्राचार्य डॉ टीकम सिंह शिक्षा और साहित्य जगत की जानी मानी हस्ती थे!सुगंधा का सपना था कि वह डॉ सिंह को अपनी पी. एच. डी. का गाइड बनाये!डॉ सिंह एक सनकी और सिरफ़िरे किस्म के इंसान थे!वह अविवाहित थे!वह महिलाओं को अपने अधीन लेना पसंद नहीं करते थे!
लेकिन सुगंधा भी ज़िद्दी स्वभाव की थी!एक दिन पहुंच गयी डॉ सिंह के बंगले पर!
"सर मुझे आपके अधीन पी. एच ड़ी. करनी है"!
"मैं महिलाओं को अपना शिष्य नहीं बनाता"!
"सर,कोई विशेष वज़ह"!
"तुम किस अधिकार से वज़ह पूछ रही हो"!
"सर, केवल जिज्ञासा वश"!
"तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देना मैं अनिवार्य नहीं समझता"!
"सर, आप कृपा करके मुझे अपना शिष्य बना लीजिये, मैंने बहुत मैहनत की है! मेरी यह पी . एच . डी मेरे जीवन की अमूल्य निधि है, मेरा सपना है, क्योंकि मैंने जो विषय चुना है उसके लिये केवल आप ही सक्षम व्यक्ति हो"!
"क्या विषय है तुम्हारा"!
"स्त्री चरित्र- एक सर्वकालीन विश्लेषण"!
"मैं बिना गुरु दक्षिणा किसी का गाइड नहीं बनता"!
"सर , आदेश कीजिये"!
"क्या तुम मेरे साथ एक रात गुज़ार सकती हो"!
"सर, मेरे जीवन का उद्देश्य है मेरी यह पी . एच . डी. ,वह भी अपके ही अधीन!यदि आपको गुरु दक्षिणा में मेरे इस तुच्छ शरीर की दरकार है तो मुझे यह भी स्वीकार है"!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी!आपने लघुकथा का गहनता से अध्यन किया, मंथन किया,विश्लेषण किया!पुनः आभार!
ये लघु कथा कई बार पढ़ी हर बार अलग निष्कर्ष निकला काफी मस्तिष्क मंथन के बाद --- हैरत हुई पढ़कर पी एच डी का विषय
नारी चरित्र का विश्लेष्ण ,और अपनी महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए चरित्र की ये बानगी ???
दूसरी और जो डॉ सिंह महिलाओं से दूरी बनाकर रखते थे उनकी ऐसी डीमांड?? --गुरु दक्षिणा में. कहीं ऐसा तो नहीं दिखाने के दांत और खाने के और | कहाँ जा रही है आज की शिक्षा पद्दति ..और गुरु शिष्य का सम्बन्ध जो एक पाक़ रिश्ता मन जाता था
जो भी है कहानी विचारोत्तेजक है कई पहलुओं को छूती है |हार्दिक बधाई आ० तेजवीर सिंह जी |
हार्दिक आभार आदरणीय कांता रॉय जी!लघुकथा को समय दिया,प्रशंसा की,साथ ही इतनी सूक्ष्मता से विश्लेषण किया!पुनः आभार!
इसे क्या कहेंगे " ज़िद " !
किसकी ? प्राचार्य की या सुगंधा की ?
प्राचार्य को लगा इसको भगाने के लिए सबसे आसान तरीका है लेकिन, वह सुगंधा की ज़िद की सीमा से अनजान था।
पी. एच. डी. और गाइड ,बहुत समाचार सुनने को मिलते है इस सिलसिले में।
चिंतन को प्रेरित करता विषय। बहुत खूब आदरणीय तेजवीर जी।
हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी!
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा जी!लघुकथा को समय देने हेतु!यह एक सत्य घटना से प्रेरित लघुकथा है!इसमें गुरु और शिष्य दौनों ही एक दूसरे की परीक्षा ले रहे हैं!यह निर्णय पाठक को करना है कि कौन सही है!यह आज भी हो रहा है और ठीक इसी तरह हो रहा है!इसमें अतिश्योक्ति जैसा कुछ भी नहीं है!सिर्फ़ सोच का फ़र्क है!सादर!
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी!लघुकथा के मर्म को जिस तरह आपने महसूस किया, मैं कृतार्थ हो गया!
यहाँ पर टार्गेटवो अतिमहत्वाकांक्षी महिला है या मौकापरस्त प्रोफ़ेसर या फिर व्यवस्था ,कुछ स्पष्ट नहीं हैं,
//सर, मेरे जीवन का उद्देश्य है मेरी यह पी . एच . डी. ,वह भी अपके ही अधीन!यदि आपको गुरु दक्षिणा में मेरे इस तुच्छ शरीर की दरकार है तो मुझे यह भी स्वीकार है // ये कुछ ज्यादा ही हो गया आदरणीय सादर
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