For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गुरु दक्षिणा – (लघुकथा ) -

  

  गुरु दक्षिणा – (लघुकथा ) -

 विश्व विद्यालय के प्राचार्य  डॉ टीकम सिंह शिक्षा और साहित्य जगत की जानी मानी हस्ती थे!सुगंधा का सपना था कि वह डॉ सिंह को अपनी पी. एच. डी.  का गाइड बनाये!डॉ सिंह एक सनकी और सिरफ़िरे किस्म के इंसान थे!वह अविवाहित थे!वह महिलाओं को अपने अधीन लेना पसंद नहीं करते थे!

लेकिन सुगंधा भी ज़िद्दी स्वभाव की थी!एक दिन पहुंच गयी डॉ सिंह के बंगले पर!

"सर मुझे आपके अधीन पी. एच ड़ी. करनी है"!

"मैं महिलाओं को अपना शिष्य नहीं बनाता"!

"सर,कोई विशेष वज़ह"!

"तुम किस अधिकार से वज़ह पूछ रही हो"!

"सर, केवल जिज्ञासा वश"!

"तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देना मैं अनिवार्य नहीं समझता"!

"सर,  आप कृपा करके मुझे अपना शिष्य बना लीजिये, मैंने बहुत मैहनत की है! मेरी यह पी . एच . डी मेरे जीवन की अमूल्य निधि है, मेरा सपना है, क्योंकि मैंने जो विषय चुना है उसके लिये केवल आप ही सक्षम व्यक्ति हो"!

"क्या विषय है तुम्हारा"!

"स्त्री चरित्र- एक सर्वकालीन विश्लेषण"!

"मैं बिना गुरु दक्षिणा किसी का गाइड नहीं बनता"!

"सर , आदेश कीजिये"!

"क्या तुम मेरे साथ एक रात गुज़ार सकती हो"!

"सर, मेरे जीवन का उद्देश्य है मेरी यह पी . एच . डी. ,वह भी अपके ही अधीन!यदि आपको गुरु दक्षिणा में मेरे इस तुच्छ  शरीर की दरकार है तो मुझे यह भी स्वीकार है"!

 मौलिक व अप्रकाशित

Views: 656

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on November 4, 2015 at 5:27pm

हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी!आपने लघुकथा का गहनता से अध्यन किया, मंथन किया,विश्लेषण किया!पुनः आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 27, 2015 at 8:34pm

ये लघु कथा  कई  बार पढ़ी  हर बार  अलग निष्कर्ष  निकला  काफी मस्तिष्क  मंथन  के बाद  --- हैरत हुई पढ़कर पी एच डी का विषय 

नारी चरित्र का विश्लेष्ण ,और अपनी महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए चरित्र की ये बानगी ??? 

दूसरी और जो डॉ सिंह महिलाओं से दूरी बनाकर रखते थे उनकी ऐसी डीमांड?? --गुरु दक्षिणा में. कहीं  ऐसा तो नहीं दिखाने के दांत और खाने  के  और | कहाँ जा  रही  है  आज  की  शिक्षा पद्दति ..और  गुरु शिष्य का सम्बन्ध जो एक पाक़  रिश्ता मन जाता था 

जो भी है कहानी विचारोत्तेजक  है कई पहलुओं को छूती है |हार्दिक बधाई आ० तेजवीर  सिंह जी |

Comment by TEJ VEER SINGH on October 27, 2015 at 10:45am

हार्दिक आभार आदरणीय कांता रॉय जी!लघुकथा को समय दिया,प्रशंसा की,साथ ही इतनी सूक्ष्मता से विश्लेषण किया!पुनः आभार!

Comment by kanta roy on October 26, 2015 at 5:54pm

इसे क्या कहेंगे " ज़िद " !  किसकी ? प्राचार्य की या सुगंधा की ? 
प्राचार्य को लगा इसको भगाने के लिए सबसे आसान तरीका है लेकिन, वह सुगंधा की ज़िद की सीमा से अनजान था। 

पी. एच. डी. और गाइड ,बहुत समाचार सुनने को मिलते है इस सिलसिले में। 
चिंतन को प्रेरित करता विषय। बहुत खूब आदरणीय तेजवीर जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on October 26, 2015 at 5:13pm

हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी!

Comment by Nita Kasar on October 26, 2015 at 12:30pm
दोनों ही ज़िद्दी के साथ साथ एके दूसरे की परीक्षा ले रहें है,दोनों ही क़ाबिल है,आज एकलव्य अँगूठा देने से मना कर दें तो वह सुयोग्य गुरू से वंचित हो जाता,सारा खेल सोच,नज़रिये का है बधाई आद० तेजवीर सिंह जी ।
Comment by TEJ VEER SINGH on October 26, 2015 at 11:04am

हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा जी!लघुकथा को समय देने हेतु!यह एक सत्य घटना से प्रेरित लघुकथा है!इसमें गुरु और शिष्य दौनों ही एक दूसरे की परीक्षा ले रहे हैं!यह निर्णय पाठक को करना है कि कौन सही है!यह आज भी हो रहा है और ठीक इसी तरह हो रहा है!इसमें अतिश्योक्ति जैसा कुछ भी नहीं है!सिर्फ़ सोच का फ़र्क है!सादर!

Comment by TEJ VEER SINGH on October 26, 2015 at 10:56am

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी!लघुकथा के मर्म को जिस तरह आपने महसूस किया, मैं कृतार्थ हो गया!

Comment by pratibha pande on October 26, 2015 at 9:31am

यहाँ पर टार्गेटवो अतिमहत्वाकांक्षी महिला  है या मौकापरस्त प्रोफ़ेसर या फिर व्यवस्था ,कुछ स्पष्ट नहीं हैं, 

//सर, मेरे जीवन का उद्देश्य है मेरी यह पी . एच . डी. ,वह भी अपके ही अधीन!यदि आपको गुरु दक्षिणा में मेरे इस तुच्छ  शरीर की दरकार है तो मुझे यह भी स्वीकार है  //  ये कुछ ज्यादा ही हो गया आदरणीय  सादर  

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 26, 2015 at 8:59am
आदरणीय Tej Veer Singh जी बहुत तीखा प्रहार किया है इन दो पंक्तियों को मिलाकर- पहली विषय बताने वाली पंक्ति और दूसरी अंतिम वाली पंक्ति । विषय में निर्धारित चरित्र का विश्लेषण यूँ स्वत: हो गया जैसे कि शोध का सौदाहरण श्रीगणेश हो गया।हार्दिक बधाई इस रचना हेतु।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service