For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कैश बाॅक्स के नजारे

साफ़ नीला आसमान

सफेद रूई सा हल्का

बिलकुल हल्का ,

हल्का वाला सफेद बादल

कभी बहुत भारी सा हो जाता है

वक्त रेशम सी ,

रेशम सी मुलायम वक्त

फिसलती हुई ,सरकती हुई

रेशमी सा एहसास देती हुई गुजर जाती है

वक्त के वजूद में

जाने क्यों पहिए होते है

जो दिखाई नहीं देते पर ब्रेक नहीं होते है

शायद ब्रेक भी रहें हो कभी लेकिन

आजकल वक्त  नहीं रूकता

यहाँ बाजार में बहुत भीड़ है

यह भीड़ कभी खत्म नहीं होती

यहाँ वक्त का कोई आस्तित्व नहीं है 

रूई के फाये सी हल्की बादलों को

कोई नहीं देखना चाहता

वक्त नहीं है बाजार में किसी को  आसमान देखने की

और चाहत नहीं है

उनको चाहत की क्या जरूरत

नीला आसमान तो

उनके दायरे में ही सिमटा हुआ जो होता है

वो सिर्फ कैश बाॅक्स की तरफ देखते है

नीला आसमान नहीं देखते

रूई के फाये सी हल्की बादलों को नहीं देखते

सिर्फ कैश बाक्स की तरफ देखते है

कैश बाॅक्स में उन्होंने

नीले आसमान को बंद करके रखा है

जब मर्ज़ी निकाल लेते है

जब मर्ज़ी देख लेते है ।

क्या जरूरत उन्हें बसंत की

क्या जरूरत उन्हें सावन और सुगंध की  

 ठहर कर क्यों देखे भला 

वो तो सारे मौसमों को

अपने कैश बाॅक्स में बंद रखते है

जब फुरसत मिलती है काम से

जब मन करता है आराम से

कैश बाॅक्स में से सारे नजारे निकाल लेते है

और जी लेते है जब तब अपने मनचाहे मौसम को

मौलिक  और अप्रकाशित 

Views: 464

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:14pm

मेरे प्रयास को संबल देने के लिए आभार आपको आदरणीय मिथिलेश जी। 

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:13pm

आभार आदरणीय शहज़ाद जी रचना पसंदगी हेतु। 

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:12pm

मार्गदर्शनयुक्त सराहना पाकर अभिभूत हुई आदरणीय शिज्जु शकूर जी।  आभार आपका।  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 1, 2015 at 10:01pm

आदरणीया कांता जी बढ़िया प्रयास हुआ है भावाभिव्यक्ति बढ़िया है. हार्दिक बधाई.

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 1, 2015 at 8:46pm
आपा-धापी, भागम-भाग की अर्थ-व्यस्तता की जीवन-शैली में कैश बोक्स संग संतुष्ट मनुष्य प्रकृति और अन्य सहज सुखों से किस तरह वंचित रह जाता है, इन सब यथार्थ को शब्द-चित्र से बखूबी व्यक्त करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया कान्ता राय जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 1, 2015 at 7:56pm
आदरणीया कांताजी अतुकांत रचनाओ मे रवानी को आखिर तक बनाये रखना एक चुनौती होती है और भावों एवं शब्दों का अकारण दोहराव भी कभी कभी रचना को कमज़ोर कर देते है। आपकी रचना के भाव अच्छे हैं बधाई आपको। हाँ लेकिन अभी भी गुंजाइश है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"देखकर ज़ुल्म कुछ हुआ तो नहीं हूँ मैं ज़िंदा भी मर गया तो नहीं ढूंढ लेता है रंज ओ ग़म के सबब दिल मेरा…"
1 minute ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"सादर अभिवादन"
14 minutes ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"स्वागतम"
16 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
19 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service