1222—1222—1222—1222 |
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तसव्वुफ़ का है आलम, जिंदगी रोने नहीं देती |
ये मैली-सी चदरिया मोह की धोने नहीं देती |
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दिखे जो नींद में यारो, वो सपने हो नहीं सकते |
ये वो शै है......कभी जो आपको सोने नहीं देती |
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ख़ुशी आई है घर में तो पसे-गम भी यकीनन है |
कभी साया अलग खुद रौशनी होने नहीं देती |
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न करती फ़िक्र माज़ी की, न रखती हैं यकीं कल पे |
सफल वो जिंदगी जो आज को खोने नहीं देती |
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तमन्नाओं के गुलशन में उगा लूं ख्व़ाब मैं लेकिन |
मेरी गैरत की पथरीली जमीं बोने नहीं देती |
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कज़ा को आज समझा है बड़ी ही नेक दिल साहिब |
बदी का बोझ बढ़ जाए तो ये ढोने नहीं देती |
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Comment
आदरणीय मिथिलेश भाई , बहुत सुन्दर गज़ल हुई है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें , कुछ सलाह दे रहा हूँ , एक बार देख लीजियेगा , अगर सही लगे तो ठीक , नही तो छोड़ दीजियेगा ॥ तसव्वुफ़ का है आलम, जिंदगी रोने नहीं देती -- मतला अच्छा है , लेकिन - ये - की कमी लगती है |
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ये मैली-सी चदरिया मोह की धोने नहीं देती |
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दिखे जो नींद में यारो, वो सपने हो नहीं सकते |
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ये वो शै है......कभी जो आपको सोने नहीं देती -- बहुत खूब -- बहुत सही बात कही |
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ख़ुशी आई है घर में तो पसे-गम भी यकीनन है --- आप जो कहना चाह रहे हैं, वो मै समझ रहा हूँ , पर मिसरा वो नही कह रहा है |
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पसे गम -- ग़म के पीछे, न कि गम भी पीछे है ( सोचियेगा , मै भी सोच रहा हूँ )
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इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक सादर बधाई कबूल करें |
सादर।
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