1212 - 1122 - 1212 – 112 |
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न ओंस है, न शफक है, न ताब है कोई |
ये लॉन एक खफ़ा-सी किताब है कोई |
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झुका झुका सा मुझे देख, सब यही कहते |
वो आदमी तो नहीं मेहराब है कोई |
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हमें ये चीज मुहब्बत है क्या, नहीं मालूम |
चमन नहीं तो ये खानाखराब है कोई |
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तुम्हें ही देख के दिल को सुकूं ये मिलता है |
हमारे प्यार का लब्बोलुआब है कोई |
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नज़र-नज़र की अदावत ये आपकी साहिब |
पुराना आप से अपना हिसाब है कोई |
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रुमाल धूप की खुर्शीद बाग़ में लाया |
यहाँ जमीन पे रोता गुलाब है कोई |
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दरो-दिवार है दहशत में, चीखता आँगन |
हमारे घर में ही लगता कसाब है कोई |
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जरा ढुलक जो गए, होश गुम हुआ मेरा |
नहीं ये आप के आँसू, शराब है कोई |
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फिजूल है न कहें और मेरी बातों पे |
जरा सा गौर करे जो, जनाब है कोई? |
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कि रेगज़ार नफस के शज़र नहीं फलते |
जो शाख पे है वो टूटा सा ख़ाब है कोई |
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वो सिर्फ इसलिए महफ़िल में कुछ नहीं कहते |
हर इक सुलूक पे हाज़िर जवाब है कोई |
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Comment
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई आपको आदरणीय मिथिलेश जी!
आदरणीय मोहन बेगोवाल सर ग़ज़ल के प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय सतविंदर जी ग़ज़ल के प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय नादिर खान सर आपका अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय सुशील सरना सर इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय रवि जी, ग़ज़ल पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया और मुखर अनुमोदन हेतु आभार. आदरणीय गिरिराज सर की इस्लाह को जस का तस स्वीकार कर लिया है. रुमाल वाले शेर पर आपके मार्गदर्शन पश्चात् पुनर्विचार करता हूँ. आपकी सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार
आदरणीय मिथिलेश जी, आप जी की बाकमाल ग़जल पर श्री गिरि राज व रवि जी की टिप्पणी बहुत अर्थ भरपूर थी बधाई हो
आदरणीय मिथिलेश जी खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई। आपके अंदर तो खज़ाना भरा पड़ा है, हर दिन नए अंदाज़ में नज़र आते है । बहुत खूब। …
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