221-2121-1221-212 |
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चैनो-सुकून, दिल का मज़ा कौन ले गया |
दामन की वो तमाम दुआ, कौन ले गया? |
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ताउम्र समंदर से मेरी दुश्मनी रही |
था रेत पर जो नाम लिखा कौन ले गया |
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जंगल के जुगनुओं को पता भी नहीं चला |
चटके बदन की जर्द कबा कौन ले गया |
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आवाज़ दे रहा हूँ मगर बेअसर जबां |
जुम्बिश लबों की नोंच भला कौन ले गया |
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अमरित ये जिल्लतों का छोड़ मेरे वास्ते |
इज्जत के जह्र का वो घड़ा कौन ले गया |
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ताउम्र फिक्रे-वस्ल वो मसरूफ ही रहे |
अब पूछते है कद्रे-अना कौन ले गया |
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मौका, जुनून आदतो-मजबूरी, आरज़ू |
वजहें थी काम की ये उठा कौन ले गया |
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मेरा कहाँ कयाम है मेरा कहाँ दयार |
मालूम ही नहीं कि पता कौन ले गया |
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उजड़े हुए चमन का था अहदे-हयात वो |
इक आस का था फूल खिला कौन ले गया |
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सीने की आरज़ू थी जो धड़कन का आसरा |
सांसों से आ रही वो सदा कौन ले गया |
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Comment
आदरणीय महर्षि भाई जी, ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद.
आदरणीय रवि जी, आपकी दाद पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद.
मतला-- दामन में समेटी हुए दुआएं कौन ले गया, ये प्रश्न है. संभवतः कथ्य वैसा संप्रेषित नहीं हो पा रहा है. पुनः प्रयास करता हूँ सादर
आदरणीय कृष्ण भाई जी, आपको पुनः ओबीओ पर सक्रीय देखकर अच्छा लगा. ग़ज़ल के मुखर अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीया राहिला जी ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय दिनेश भाई जी ग़ज़ल के मुखर अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आ.मिथिलेश वामनकर सर ,आपकी हर गजल में कुछ न कुछ सीखने को मिलता है ,सुंदर शब्दों से सजी एक और सुन्दर गजल पर आपको बधाई |
वाह वाह वाह मिथिलेश जी श्ाानदार ग़ज़ल कही है आपने हर शेर अपने भाव को बखूबी कह रहा है
जंगल के जुगनुओं को पता भी नहीं चला
चटके बदन की जर्द कबा कौन ले गया .... क्या कहने भई वाह वाह वाह
मौका, जुनून आदतो-मजबूरी, आरज़ू
वजहें थी काम की ये उठा कौन ले गया बहुत खूब शानदार कथ्य
हमने दो शेर इस लिये लिखें कि ये हमें बहुत अच्छे लगे । वैसे पूरी ग़ज़ल शानदार है शेर दर शेर दाद कुबूल करें ।
एक बात पर आप भी विचार करियेगा जो मतला पढ़ के हमारे मन में आई है दुआएं तो देने के लिये ही होती है कोई भी दे फिर कोई ले गया तो शिकायत क्यूं । ये जिज्ञासा है शिकयत है रंज है सवाल है क्या है । सादर
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