संबोधन
“देखो ये बस अब नहीं जा सकेगी खराब हो चुकी है चारो और सुनसान है लगभग सभी सवारियां पैदल ही निकल चुकी हैं ये दो चार लोग ही बचे हैं और बहन, मेरा गाँव पास में ही है पैदल ही चले जाएँगे सुबह खुद मैं तुम्हारे गाँव छोड़ आऊँगा मेरे साथ चलो तुम्हारे लिए यही ठीक रहेगा” सतबीर ने कोमल से कहा |
कोमल ने मन मे बेटी संबोधन, जो कुछ देर पहले बस में बचे हुए उन लोगों ने दिया को बहन के संबोधन से भारी तौलते हुए तथा खुद को मन ही मन कोसते हुए कि किस मनहूस घड़ी में वो पति से लड़कर गाँव जाने की जिद में इस बस में बैठ गई, सतबीर के साथ जाने से इनकार कर दिया|
“कितने दूध के धुले बनते हैं आजकल के ये लड़के” सतबीर के जाने के बाद उनमे से एक कोमल के पास खिसकते हुए बोला| “बेटी ठंड लग जायेगी ले ये चादर ओढ़ ले” दूसरे ने अपनी चादर उढाते हुए कहा” फिर तीनों कहकहा लगा कर हँस पड़े तब तक ड्राईवर भी दारू की बोतल लेकर उनके पास आ बैठा|
कोमल का बेटी संबोधन पर भरोसा मानों टुकड़े-टुकड़े हो गया वो आसमान से गिरी खजूर में अटकी सी हालात का मुकाबला कर ही रही थी कि अचानक अँधेरे में ही तड़ातड़ डंडों की चोट से वो चारों चिल्लाने लगे दो बाहों ने कोमल को एक तरफ खींच लिया कोमल के हाथ उसकी चूड़ियों पर पड़े तो कोमल उससे लिपट गई|
तभी दूर से किसी ने टॉर्च जलाई तो देखा चार औरतें सतबीर के साथ डंडे लेकर उन आदमियों पर टूट पड़ी थी| अब सतवीर की छवि कोमल को दूध में धुली धवल दिखाई दे रही थी|
“उफ्फ.. इन गंदी मछलियों को मैं समझ ही नहीं पाई एक संबोधन के छलावे में कितना गलत फेंसला कर बैठी ” बुदबुदाते हुए कोमल उस माँ की छाती से जोर से चिपक गई |
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ० विजय निकोर जी, मैं आज खुद ओबीओ पर पन्द्रह दिन बाद लौटी हूँ आपने लघु कथा को सराहा आपका हार्दिक आभार|
बहुत देर के बाद ओ बी ओ पर आ पाया हूँ, और यह भावपूर्ण लघु कथा पढ़ कर आनन्द आया। हार्दिक बधाई, आदरणीया राजेश जी।
आ० कांता रॉय जी,आपको ये लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत- बहुत आभार आपका |
आ० तेजवीर सिंह जी, आपको ये लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका |
हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश जी!बेहतरीन लघुकथा! बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आ० सतविंदर जी आपको कहानी पसंद आई बहुत बहुत शुक्रिया |
बहुत- बहुत आभार सुनील वर्मा जी
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