बहर 2122/1122/1122/22
वो मेरा दिल है शिकायत से पता लिखता है।
मेरे खातिर वो इबादत -ओ- दुआ लिखता है।।
कोरे कागज में सरारत से खता लिखता है।
जब भी लिखता है मुहब्बत है जता लिखता है।।
उसकी रंगत में छिपा चाँद है वो शहजादी।
ख्वाब हर रात को उसकी ही अदा लिखता है।।
कौन शायर है शहर का युँ तिजारत वाला ।
शोख नजरों के इशारों को दगा(बिका) लिखता है।।
वो किसानों के घरों में हैं पकी फसलों सी।
उनकी खुश्बू से खलिहान छठा लिखता है।।
वो मेरे इश्क में तल्खी से उतरगर जाएँ।
तो गजल अर्श को तख्ती से सजा लिखता है।।
मेरे मंदिर में चिरागों के उजाले जैसा।
एक वो है जो अंधेरों से जुदा लिखता है।।
कितने सहमे से है देखो तो गरीबों के घर।
क्यों ये अखबार ही दंगों को मजा लिखता है।।
मौलिक/अप्रकाशित
आमोद बिन्दौरी
Comment
बढ़िया कोशिश हुयी है, आदरणीय आमोद जी, बाकि सुधीजनों ने अच्छी टिप्स दी है प्रयासरत रहें ।
आदरणीय आमोद जी शिल्प पर आपका प्रयास सुन्दर है बधाई । कुछ मिसरों में उला और सानी में राबता सही तरह से नहीं बन रहा है । शहर को आपने 12 के वज्न में लिया है जबकि इसे 21 के वज्न में शह्र लिखा जाता है । आपकी ग़ज़ल के कुछ मिसरा ए उला बहुत अच्छे हुए है उनके लिये बधाई ।
भाई आप में कमाल का आत्म-विश्वास है जो ग़ज़ल जैसी सबसे मुश्किल विधा पर भी लिख डालते हो
कुछ शेर तो सवा शेर हैं ब्रदर
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