दोस्त कोई न मेह्रबाँ कोई
काश मिल जाए राज़दाँ कोई /१
दिल की हालत कुछ आज ऐसी है
जैसे लूट जाए कारवाँ कोई /२
एक ही बार इश्क़ होता है
रोज होता नहीं जवाँ कोई /३
तुम को वो सल्तनत मुबारक हो
जिसकी धरती न आसमाँ कोई /४
सारथी कह सके जिसे अपना
सारथी के सिवा कहाँ कोई /५
...........................................
सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
अरकान: २१२२ १२१२ २२
Comment
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी , आशीर्वाद है आपका ! कृपया स्नेह बनाये रखियेगा ! आपका ही - सारथी :)
आदरणीय बैजनाथ जी इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
"जैसे लूट जाए कारवाँ कोई" , जी जनाब समर कबीर साहिब , लिखने में गलती हुई , कृपया सही करके पढ़ा जाए , प्रार्थी !
आदरणीय laxman dhami जी , अनेक धन्यवाद ! सादर नमन सहित :)
भाई jaan' gorakhpuri जी और जनाब Samar kabeer साहिब , आपकी दुआओं और मुहब्बतों के लिए तहे-दिल से शुक्रगुजार हूँ ! मोहतरम कबीर साहिब , आपने ख़ाकसार को जो इज्जत बख्शी है , उसके लिए शीश नत प्रणाम कर रहा हूँ और हृदय-तल से आभार भी ज्ञापित कर रहा हूँ !
विनीत आभार सहित , आपका ही सारथी :)
इस अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई l
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