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वह रहस

आदम फितरत है

भई

राम ने आसन्न -प्रसूता

को छोड़ दिया वन में

जीने, भटकने या  मरने 

भला हो वाल्मीकि का --- I

और कुछ ऐसा ही किया

कृष्ण ने राधा के साथ

छोड़ दिया निराश्रित

जीने, भटकने या मरने I

सीता का अंत तो जानते है सभी

इसी माटी में दफ़न हुयी थी कभी

पर राधा ------?

कब तक तकती रही राह ?

भेजती रही पाती और सन्देश

फिर कहाँ गयी वह ?

कैसे हुआ उसका अंत ?

किसी ने भी याद नही रखा

लानत है ब्रज और भारत !

क्यों मानते हो तुम राधा को माँ

क्यों खडा करते हो उसका विग्रह

कृष्ण के पार्श्व में

जब आज तक न जान पाए तुम

वह रहस जो उसने रचाया 

और न वह रहस

कि  वह कैसे जन्मी और कब गयी ?

  

 (मौलिक व अप्रकाशित )

  

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Comment by Samar kabeer on December 18, 2015 at 10:57pm
आली जनाब डॉ गोपाल नारायण जी,आदाब,आपकी गहन सोच का परिणाम है ये कविता,दाद के साथ बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Shyam Narain Verma on December 17, 2015 at 5:27pm
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई 

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