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2212 2122 2
हर बार तू खार पाता है
उसको जिता हार जाता है।
सपने दिखा वह चला जाता
सबकुछ मुआ मार जाता है।
आया छड़ी जो पिटा था वह
तुझपर हुकूमत चलाता है।
थाना नचा था रहा जिसको
वह अब तुझे ही नचाता है।
बस मत लिया फिर चला जाता
आता यहाँ कब भुलाता है।
बाँटा कभी,तू कभी कटता
मिल भी गया जब मिलाता है।
सोचा कभी हाथ रहता क्या?
हर बार कर तेरा कटाता है।
हर बार तू ही मरा दंगों में
झंडा उड़ा, तू बँटाता है।
आता मसीहा नया फ़रमा,
तू शीश फिर से झुकाता है।
मौलिक व अप्रकाशित@

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Comment by Manan Kumar singh on December 24, 2015 at 11:43am
आदरणीय गिरिराज भाई,आपका आभार

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Comment by गिरिराज भंडारी on December 24, 2015 at 11:04am

आदरणीय मनन भाई , आपको गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Manan Kumar singh on December 23, 2015 at 5:33pm
शुक्रिया समर जी
Comment by Samar kabeer on December 21, 2015 at 10:51pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी,आदाब,इस प्रयास के लिये बधाई स्वीकार करें,अभी आपके क़लम को धार की ज़रुरत है ।

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