सत्तर वर्षीय राजेश जी के इकलौते बेटे किशोर की मृत्यु पिछले साल एक कार दुर्घटना में हो गयी थी!पत्नी की मृत्यु किशोर की शादी से पहले ही हो चुकी थी! अब परिवार के नाम पर राजेश जी और उनकी जवान पुत्र बधु सीमा थी!वह भी बैंक में कार्यरत थी! जवान किशोर की मौत के सदमे ने दौनों को लगभग मूक बना दिया था!दौनों में से कोई किसी से बात चीत नहीं करते थे!वश यंत्र वत अपने अपने कार्य करते रहते थे! किशोर की बरसी की रस्म पूरी होते ही राजेश जी ने सीमा को समझाया,"सीमा तुम पढी लिखी, सुंदर, जवान और कामकाजी महिला हो! तुमको अभी भी कोई अच्छा रिश्ता मिल सकता है!मैं सोचता हूं कि अखबार में इश्तिहार दे दूं"!
"नहीं बाबूजी, आपके मन में ऐसा विचार आया कैसे"!
"बेटी, मुझसे तुम्हारा दुख देखा नहीं जाता"!
"बाबूजी, मेरा दुख क्या आपके दुख से भी बडा है!बाप के कंधे पर जवान बेटे की अर्थी दुनियां का सबसे बडा दुख होता है!हम आपको छोड कर कहीं भी नहीं जायेंगे"!
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब जी!लघुकथा पर आप जैसे गुणी और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का आशीर्वाद अपने आप में एक शानदार उपलब्धि है!इसे भविष्य में भी बनाये रखियेगा!दिली शुक्रिया!
हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी!लघुकथा पर आपकी सार्थक टिप्पणी मेरे उत्साह बर्धन का एक उत्तम माध्यम है!पुनः आभार!
हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना जी!लघुकथा पर आपकी टिप्पणी मेरी मेहनत का पुरुस्कार है!शुक्रिया!
''बाप के कंधे पर जवान बेटे की अर्थी दुनियां का सबसे बडा दुख होता है''
वाह ,आदरणीय तेजवीर सिंह जी वाह।, आपकी कलम से बहुत ही मार्मिक और सारगर्भित लघुकथा का सृजन हुआ है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
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