लाल रंग"
शिवरात्रि को रौशनी शंकर जी के मंदिर में पूजा कर रही थी तभी उसे सूरज की आवाज सुनाई देती है
"रोशनी रुक जाओ मेरी बात तो सुनो"
"नहीं सूरज तुम नहीं जानते हमारे इस तरह मिलने ये समाज क्या क्या ताने मारेगा......।
"रोशनी किन तानो से डरती हो ....?
जो दर्द ,जो शापित जिंदगी तुम जी रही हो क्या इसकी ज़िम्मेदार तुम हो।"
"नहीं सूरज मैं विधवा हूँ मेरे ज़िन्दगी में रंगों की कोई जगह नहीं.....
"रौशनी बीस वर्ष की उम्र में वैध्वय..क्या जो समाज तुम्हारे जीवन से खुशियो के रंग छीन सकता है उसे तुम्हारी ज़िन्दगी में हरियाली लाने का कोई अधिकार नहीं.......?
रौशनी की आँखों से आसुवों की धाराये बह रहीं थी...वो सिसकते हुवे सूरज से कहती है"सूरज एक औरत दो कुलों की इज़्ज़त होती है और मैं अपनी ख़ुशी के लिये दो परिवारों के मुंह पर कालिक नहीं पोतना चाहती"
"बस रोशनी बस भगवान ने तुम्हें विधवा बनाकर सफ़ेद रंग दे दिया, तुम अपने जीवन में अँधेरा कर दोनों परिवारों के मुह पर कालिक नहीं पोतना चाहती ,आखिर इतनी क़ुरबानी क्यू....?
"तो क्या करूँ .......?अपनी बूढी माँ को जीते जी मार दूँ......अपने बूढ़े सास ससुर को इस उम्र में बेइज़्ज़ती के दल दल में धकेल दूँ ,कौन है जो मुझ विधवा से दोबारा शादी करेगा सूरज ये समाज एक स्त्री की इज़्ज़त से खेल कर उसे बदनाम तो कर सकता है पर किसी विधवा को सम्मान की ज़िन्दगी जीने की इज़ाज़त नहीं दे सकता।
सूरज रौशनी के नज़दीक जाकर "रोशनी इस दुनिया में कोई है,जो तुम्हारे जीवन के अँधेरे को मिटा कर तुम्हें लाल रंग से सजा देना चाहता है अगर तूम्हे मंज़ूर हो, तो मै तुम्हारी ज़िन्दगी में खुशियों के रंग भरने को तैयार हूँ रौशनी " रौशनी सूरज एक दूसरे को देखते रह जाते हैं
एक वर्ष के उपरांत रौशनी अपने पति व् एक माह के बेटे चिराग के साथ शिवरात्रि की पूजा करने सभी रंगों में सजकर आती
मौलिक अप्रकासित
अमित त्रिपाठी (आज़ाद)
Comment
आदरणीय अमित त्रिपाठी जी, इस प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई. सादर
आदरणीय अमित त्रिपाठी आज़ाद जी, मैं संभवतः आपकी कोई पहली रचना पढ़ रहा हूँ. आपकी लघुकथा केलिए हार्दिक धन्यवाद व अशेष शुभकामनाएँ. आपका इस पटल पर स्वागत है.
साथ ही, एक सुझाव भी है. आप इसी ओबीओ केपटल पर लघुकथा विधा पर उपलब्ध साहित्य (आलेख आदि) पढ़ें. आपके सामने इस विधा को लेकर कई बातें खुलती जायेंगीं.
शुभेच्छाएँ
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