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सवाल लिखना जवाब लिखना तू कल्पना की उडान लिखना
किसी की चाहत किसी की नफरत किसी के गम का उफान लिखना

बचाना खुद को सदा अहम से कभी न झूठे बयान लिखना
अगर न सच को हो लिखना मुमकिन तो सच्चे लोगों की शान लिखना

जो ज़िन्दगी से हुए परेशां भटक रहे हैं खला के घर में
तू उनकी आँखों को पढ़ने जाना उदासियों के निशान लिखना

ज़माने भर औ फलक की खुश्बू सजेगी तेरी हथेलियों में
ज़मी की खातिर मिले ज़मी में तू उनके जीवन का गान लिखना

नज़र का ग़म जो ग़ज़ल में भर दे हुनर ये हासिल किसी किसी को
नहीं है मुमकिन जो शाइरी तो तू दिल में भारत महान लिखना

मौलिक और अप्रकाशित
सुखनवर नामक whats up ग्रुप पर काफ़िया बंदिश कार्यक्रम में आज ही कही गई

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Comment by मनोज अहसास on February 26, 2016 at 4:06pm
आदरणीय मिश्रा जी बहुत बहुत आभार
सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 26, 2016 at 10:26am

आदरणीय मनोज जी ..इस कठिन बहर पर आपके इस शानदार प्रयास पर हार्दिक बधाई ..अच्छा सन्देश निहित है इस ग़ज़ल में ढेर सारी बधाई के साथ सादर 

Comment by मनोज अहसास on February 26, 2016 at 9:56am
सभी आदरणीय सुधी जनो का हार्दिक आभार
सादर
Comment by Madan Mohan saxena on February 25, 2016 at 5:39pm

नज़र का ग़म जो ग़ज़ल में भर दे हुनर ये हासिल किसी किसी को
नहीं है मुमकिन जो शाइरी तो तू दिल में भारत महान लिखना


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 24, 2016 at 4:49pm

आदरनीय मनोज भाई , एक बहुत कठिन बह्र मे आपने बढिया गज़ल कही है , दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2016 at 11:41am

आ० भाई मनोज जी अच्छी ग़ज़ल हुई .हार्दिक बधाई .

कृपया ध्यान दे...

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