For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पूरा अधूरा वायदा

पूरा अधूरा वायदा

शब्दों के अभाव में कहे-अनकहे के

कढ़वे अन्तराल में

पार्क में पत्थर के बैंच को साक्षी बना

आसान था कितना

हम दोनों का अलविदा के समय कह देना ...

" हो सके तो भूल जाना  तुम  मुझको "

" तुम  भी ..."

उस शाम के मेघों की वाणी में कुछ था, कुछ कहा

अत: वायदा वह पूरा हो न सका, न तुमसे, न मुझसे

रुँधी हुई ज़िन्दगी में भुलाने के असफ़ल प्रयास में

स्मृतिओं  के धुँआते खंडहर के ढरते-भुरते मिनार में

आदतन यंत्रबद्ध क्यूँ चले आते हैं कष्ट-ग्रस्त

ख्यालों में कदम तुम्हारे, कभी कदम हमारे

दुहराने वही पुरानी कहानी, सुनाने कोई नए फ़साने

पीड़ा की रातों में विरह की गूँजती हवाओं में

रात-बेरात  अतीत की मरी आत्माओं में

समय की पुरानी हवेली में धुँए को ठेलती

बेकाबू चाँदनी को  अकुलाई आँखों में थाम

क्या ढूँढती हो जाकर दबे पाँव तुम बार-बार 

मैं नहीं हूँ उस धुँए में कहीं

न हूँ मैं अब धुँए के उस पार

सुना है यह भी कि आँसू भरे नेह की

अन्तर की बारिश में भीगी, देती हो दुआएँ

आधी-आधी रात  अँधियारे आसमान तले

उदास, गहरे खारे पानी में डूब-डूब

भर्रायी आवाज़ में दुहराती हो

मेरी कविताओं के उदास ग़मगीन शब्दों को

खोजती हो पंक्ति दर पंक्ति स्वयं को उनमें

पर ग़लत हो, अब नहीं हो कहीं तुम उनमें

समा सकती थीं कहाँ  हमारी सनातन भावनाएँ

प्राण-प्रिय,  हमारे स्नेह की उदभासित आत्माएँ

स्मृतिओं के अकुलाते ख़्यालों के  आलिंगन में

कि अब समाई हैं  हमारी परस्पर पावन-श्रद्धाएँ

सूक्ष्मतम से सूक्ष्मतम रहस्यात्मक तन्मात्राओं-सी

भावनाओं की सम्मोहक  स्वप्निल मधु-छाया में

-----------

विजय निकोर

{मौलिक व अप्रकाशित

Views: 364

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on February 24, 2016 at 11:37am
ऐसे वायदे कभी कहाँ पूरे होते है । रेंगते रहते है कभी काले साँप की तरह , आत्मा पर , बदन पर , नीला करते हुए उनको अपने असर से या कभी रूई के फाये से सहलाते रहते है अंतर्मन को धीरे - धीरे और दे जाते है शीतल चंदन सी राहत मन को ।
मन को बाँधकर कहाँ से कहाँ ले गई है आपकी इस प्रस्तुति ने । शब्दों की ऐसी लहरें , भावनाओं की तरंगों को आपने यहाँ एक ऐसी अद्वितीय गति प्रदान की है कि पढते हुए पाठक भी उन भावनाओं में गोता लगाने को जैसे मजबूर हो उठता है ।
बहुत बहुत बधाई आपको आपकी इस अनुपम रचना के लिए आदरणीय विजय निकोर जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service