शून्याकृति
अकेलापन
अकेला नहीं आता
जाने कहाँ-कहाँ से कैसे
अपने नहीं तो पराय कितने
दर्द साथ बटोर लाता है
गम्भीर-तन्मय, ध्यान मग्न
कोई हृदय-सम्बँध हो मानो
पीड़ा से पीड़ा का
गूँजते हैं पूनो में सीने में
अमावस में भयानक वीरानों में
बरसातों में, पीड़ा की रातों में
ध्वनिगुँजित स्नेहमय स्वर
उखड़े-उखड़े अधबने अधूरे
वेदनामयी मूक पुकार बन आए
कि दर्द ही अब हो जैसे गहन सत्य
दर्द ही ज़िन्दगी का इमान बना हो
हर घने बड़े-बड़े दर्द के बीच चुपचाप
अकेलापन अपने इर्द-गिर्द लगातार
भयानक धारदार सवाल बुनता है
ईश्वर के आस-पास भी अब मानो
कुछ सरल नहीं लगता ...
मेघों की गर्जन संघर्षवादी सत्य है कोई
या बरस-बरस कर अब अन्त से पहले
है एक आख़री ठहाका
ऐसे में साँसें भारी, आँखें धूमित
करती हैं इन्तज़ार
बुझते तारों के राख हो जाने का
आओ बैठो, बैठो कुछ और निकट
इस झुकी-झुकी सँवलाई साँझ हम कर लें
विदा के बाद पलट गई ज़िन्दगी के बाद की बातें
और ऐसे में कर लें हम कुछ नए समझोते
तुम अपने, कुछ हम अपने अकेलेपन से
---------
--- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीया कल्पना जी।
गूँजते हैं पूनो में सीने में
अमावस में भयानक वीरानों में
बरसातों में, पीड़ा की रातों में
ध्वनिगुँजित स्नेहमय स्वर
उखड़े-उखड़े अधबने अधूरे
वेदनामयी मूक पुकार बन आए
कि दर्द ही अब हो जैसे गहन सत्य
दर्द ही ज़िन्दगी का इमान बना हो
वाह बहुत बढ़िया | बधाई स्वीकारें आदरणीय |
सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय रवि जी।
आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रामबली जी।
आदरणीय विजय निकोर जी बहुत खूबसूरत प्रस्तुति बधाई स्वीकार करें । सादर ।
// इतने सुन्दर भाव इतनी विदग्ध कल्पना आपके ही बस का है //
मुझको और इस रचना को आपने इन अमूल्य शब्दों से इतना मान दिया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गोपाल नारायन जी।
//अति सुंदर भाव रचित रचना //
सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण जी।
सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय विजय शंकर जी।
आओ बैठो, बैठो कुछ और निकट
इस झुकी-झुकी सँवलाई साँझ हम कर लें
विदा के बाद पलट गई ज़िन्दगी के बाद की बातें
और ऐसे में कर लें हम कुछ नए समझोते
तुम अपने, कुछ हम अपने अकेलेपन से---------- आदरणीय निकोर जी . इतने सुन्दर भाव इतनी विदग्ध कल्पना आपके ही बस का है , आपकी कलम को नमन , सादर .
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