हमने बाँट ली ज़मीन
फिर आसमान
अब बाँट लिए
चाँद सूरज और तारे
फिर बाँटा
देश-वेश, रहन- सहन
रंग-ढंग, जाति- प्रजाति
ख़ुदग़रज़ई
बढ़ती जा रही है.
अब हमने छुपा दिया है
सदभावना को, भाईचारे को
किसी गहरी खाई में.
हम अब नहीं बाँटना चाहते
सहज स्नेह
आमने- सामने..
.
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
साभार धन्यवाद सतविन्द्र कुमार jee.
बहुत ही पीड़ादायी है यह बंटवारा .हकीकत पर शानदार तंज.
आ. कांता जी, साभार धन्यवाद.
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