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आप कैसे देखते है?
उसे कैसे स्वीकारते है
दुलार्ते हैं या नकारते हैं
यह आप पर निर्भर है.
आपके समाज पर निर्भर है.
कैकेई भी, कौशल्या भी,
देवकी और यशोदा भी
वाचाल मंथरा भी.
पुरुष की जननी भी
माता और भगिनी भी.
ज्वाला की अग्नि भी.
आप कैसे देखते है?
आधुनिकसमाज सुधारकों के अनुसार
दलित, शोषित, पीड़ित,उपेक्षित
वंचित, कुचलित भी वही है.
आप कैसे देखते है?

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on February 12, 2016 at 12:35am

बहुत बहुत आभार. जनाब Sheikh Shahzad Usmani jee.

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 9, 2016 at 1:53pm
बात अभी बाक़ी है, कुछ और भी देखना दिखाना, जगाना लाज़मी है। बेहतरीन दृष्टिकोण से पीड़ा शाब्दिक करती रचना के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय डॉ. विजय प्रकाश शर्मा जी।
Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on February 9, 2016 at 7:33am

आदरणिया प्रतिभा पांडे जी बहुत, बहुत आभार

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on February 9, 2016 at 7:32am

आदरणीय मिथिलेश जी, बहुत बहुत आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 9, 2016 at 1:21am

आदरणीय इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by pratibha pande on February 8, 2016 at 10:04pm

कैकेई भी, कौशल्या भी,
देवकी और यशोदा भी
वाचाल मंथरा भी.
पुरुष की जननी भी
माता और भगिनी भी //  बहुत प्रभावशाली  रचना ,, सब निर्भर करता है कि हम कैसे दखते हैं ,  हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ विजय प्रकाश जी 

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