For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उकेर दिया है

समय की रेत पर

अपना हस्ताक्षर.

जानता हूँ

ख़त्म हो जाएगा

रेत के बिखराव से

मेरा वज़ूद.

संभावना यह भी

किसी संकुचन क्रियावश

घनीभूत हो रेत

प्रस्तर बन जाय .

तब देख पाओगे

खंडित होने तक

मेरा हस्ताक्षर.

कुच्छ भी तो नहीं है

अनंत.

(विजय प्रकाश)

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 784

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on September 14, 2015 at 7:16pm

बहुत बहुत आभार 

kanta roy JEE.

Comment by kanta roy on September 11, 2015 at 5:02pm

" कुछ भी तो नहीं है अनंत " ---- वाह , मन को कहीं दूर चिंतन मनन को ले जाता हुआ आपका ये हस्ताक्षर , जो रेत पर लिखे है ,जो मिटने के लिए ही उकेरे गये है । बहुत खूब हुई है ये रचना । एक - एक शब्द कई मीलों सी गहराई लिए । बधाई स्वीकार करें इस सुंदरतम रचना के लिए आदरणीय डा. विजय प्रकाश जी

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on September 11, 2015 at 9:43am

आ. सौरभ जी, मिथिलेशजी,प्रतिभा जी,राम सिरोमणि जी,शिज़्ज़ु शकूर जी,मोहन जी, प्राची सिंह जी, सुनील जी,
आप सबों का स्नेह-लेप लेखन की जीजीविषा को जीवित रखने का अमृत प्रदान करता है. आप सभी मित्रों का बहुत बहुत आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 8, 2015 at 8:25pm

आ० डॉ० विजय प्रकाश शर्मा जी 

समय के आईने में आकृतियाँ के बहुत प्रभावी बिम्ब बनना... पर सब कुछ तो क्षणभंगुर ही है. 

इसका भान रहे तो नाम..पद..प्रतिष्ठा..पाकर अहंकार में मन कभी न फँसे 

इस भावदशा के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं 

प्रभावी प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई

Comment by shree suneel on September 8, 2015 at 1:53am
गहन भाव को अभिव्यक्त करती इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको आदरणीय. सादर.
Comment by मोहन बेगोवाल on September 6, 2015 at 10:20pm

  आदरनीय विजय परकाश जी, इस भाव भरी कविता के लिए बधाई कबुल करें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 6, 2015 at 9:02pm
बहुत सुंदर कविता है आदरणीय डॉ विजय सर बहुत बहुत बधाई आपको
Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on September 6, 2015 at 4:36pm

इस रचना पर आपके अनुमोदन की प्राप्ति से प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है. आप सब आदरणीय मित्रों का हार्दिक आभार.

Comment by ram shiromani pathak on September 6, 2015 at 1:03pm
बहुत सुन्दर भाव आदरणीय बधाई आपको
Comment by pratibha pande on September 6, 2015 at 9:14am

बहुत उत्कृष्ट रचना ,हार्दिक बधाई आपको आदरणीय विजय प्रकाश जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service