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गोली (लघुकथा)राहिला

उसके अब्बा को खानदान में ही बेटी ब्याहनें की जाने कैसी सनक सवार हुई,कि अपने भतीजे से शादी के फरमान की गोली मेरे सीने में दागकर, मेरी और शब्बो की मुहब्बत का जनाज़ा निकाल दिया ।इसके बाद मैंने शहर ही छोड़ दिया और पूरे तीन साल बाद आज जब बस अड्डे पर उतरा तो उसे पूरे साजो सामान और एक छोटे से बच्चे के साथ सामने खड़ा पाकर यूं लगा जैसे किसी ने फिर दिल पर गोली दाग दी हो।मैं लड़खड़ा सा गया और जाने कब, कैसे उसके पास पहुँच गया पता नहीं ।शायद वो मेरी कैफियत समझ गई थी । तभी उसका शौहर रिक्शा लेकर आ पहुंचा । मैं कुछ कहता इससे पहले वो अपने शौहर से बोली -"रज्जाक! ये हमारे पड़ोसी जलील मियाँ!,और बेटा बंटी! मामू को सलाम करो जल्दी से "
ठाँय...पास से गुजर रही बारात में किसी कम्बख्त ने गोली छोड़ी ।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on March 23, 2016 at 11:25am
बहुत शुक्रिया आदरणीय परवेज साहब! आपको रचना पसंद आई तो लगा लिखना सार्थक हुआ । सादर आभार
Comment by Parvez khan on March 23, 2016 at 11:00am
बहुत ही खूबसूरत रचना है बक्त के साथ बदलते रिश्ते फिर एक न भरने वाला जख्म ।मुबारक आपको
Comment by Rahila on March 15, 2016 at 8:09pm
बहुत शुक्रिया आदरणीय चंद्रेश सर जी!आपकी इतनी सुन्दर टिप्पणी पा कर बेहद प्रसन्न हूं । बहुत आभार, रचना पर आपकी नजर तो पड़ी ।सादर नमन
Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on March 15, 2016 at 5:01pm

वाह आदरणीया राहिला जी, परिस्थिति आने पर कैसे अपने मस्तिष्क का प्रयोग कर मजबूर में ही सही पर किसे क्या बताया जाता है, इस सच को आपकी यह लघुकथा पूरी तरह समेटे है| इस रचना के सृजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें|

Comment by Rahila on March 15, 2016 at 2:06pm
बहुत -बहुत आभार आदरणीय विजय सर जी! आपने रचना के मर्म को समझा और खूबसूरत टिप्पणी से रचना को नवाजा बहुत शुक्रिया । सादर नमन
Comment by vijay nikore on March 15, 2016 at 1:42pm

रिश्तों के बदलाव का चित्रण ... हृदय विदारक।

अति मार्मिक, अति सुन्दर लघु कथा। हार्दिक बधाई।

Comment by Rahila on March 15, 2016 at 12:45pm
आदरणीय राम शर्मा सर जी! बहुत शुक्रिया आपका जो रचना से आप संतुष्ट हुये । आपकी उपस्थित मेरे लेखन को सार्थक कर गई । सादर
Comment by Ram Sharma on March 15, 2016 at 11:48am

पहली दो पंक्तियाँ पढ़ीं तो लगा कि कहीं कालखंड तो नहीं आ गया, लेकिन आखिरी तक आते आते लघुकथा ने संतुष्टि दे दी.. बधाई  जी  आपको

Comment by Rahila on March 15, 2016 at 10:51am
बहुत आभार आदरणीय मुखर्जी सर! आपकी नजर रचना पर पड़ी मेरे लिये अत्यंत खुशी की बात हुई । सादर

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Comment by sharadindu mukerji on March 15, 2016 at 3:18am
वाह आदरणीया. गोली की गति और आवाज़ दोनों ने दिल और मस्तिष्क को छूआ...खूब छूआ. सादर.

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