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अनचाहा (लघु कथा )

मानसिक रूप से तैयार न होने के बावजूद उसने बीज डाल दिया और अंकुर भी फूट गया ।नौ माह कैसे सिंचित हुआ,चूसता रहा रस परजीवी बन कर ।
"लो ये आ गया आपका कुल दीपक ।"
बच्चे को सास के सुपुर्द करते हुए।"अब सम्हालो इसे।"

छुट्टी खराब कर दी छः महीने की और छः स्ट्रेच निल की बोतल ।

.

पवन जैन,जबलपुर।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Pawan Jain on March 14, 2016 at 10:00pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी सादर आभार ।
आदरणीय नीता कसार जी बहुत बहुत धन्यवाद ।

Comment by Nita Kasar on March 11, 2016 at 7:14pm
गूढ संदेश देती कथा के लिये बधाई आद०पवन जैन जी ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 11, 2016 at 11:07am
हवा में आधुनिकता। बधाई , आदरणीय पवन जैन जी , सादर।

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