क्या है जीवन, आज समझने मैं आया हूँ
कठिन समय का दर्द सदा ही पाया मैंने
बस आशा का गीत हमेशा गाया मैंने
जब तुम बनते धूप, बना तब मैं साया हूँ
जन्म काल से सत्य एक जो जुड़ा हुआ है
मानव की उफ़ जात बनी ये आदत कैसी
सदा ज्ञात यह बात मगर क्यों भूले जैसी
वहीँ शून्य आकाश एक पथ मुड़ा हुआ है
आया है जो आज उसे निश्चित है जाना
इस माटी का मोह, रहे क्यों साँझ सकारे?
इस माटी का रूप बदल जायेगा प्यारे
फिर भी रे इंसान सत्य को कब पहचाना
कठिनाई पर व्यर्थ मनुज तेरा रोना है
जीवन का उत्थान कर्म पथ से होना है
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय उस्मानी जी, इस प्रयास की सराहना हेतु हार्दिक आभार. सॉनेट का यह मेरा भी प्रथम प्रयास है. इसे मैंने रोला छंद आधारित बाँधने का प्रयास किया है. सादर
आदरणीया KALPANA BHATT जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर...
आदरणीय Ram Ashery जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय vijay nikore सर, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय Ravi Shukla जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
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