क्या है जीवन, आज समझने मैं आया हूँ
कठिन समय का दर्द सदा ही पाया मैंने
बस आशा का गीत हमेशा गाया मैंने
जब तुम बनते धूप, बना तब मैं साया हूँ
जन्म काल से सत्य एक जो जुड़ा हुआ है
मानव की उफ़ जात बनी ये आदत कैसी
सदा ज्ञात यह बात मगर क्यों भूले जैसी
वहीँ शून्य आकाश एक पथ मुड़ा हुआ है
आया है जो आज उसे निश्चित है जाना
इस माटी का मोह, रहे क्यों साँझ सकारे?
इस माटी का रूप बदल जायेगा प्यारे
फिर भी रे इंसान सत्य को कब पहचाना
कठिनाई पर व्यर्थ मनुज तेरा रोना है
जीवन का उत्थान कर्म पथ से होना है
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय rajesh दीदी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला सर, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय narendrasinh chauhan जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीया Rahila जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय Dr. Vijai Shankerसर, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
आदरणीय Saurabh Pandey सर, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर
वाह | सुंदर रचना हुई है आदरणीय | हार्दिक बधाई |
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