अरकान – 1222 1222 1222 1222
सभी आते हैं घर मेरे महज़ दीदार की खातिर|
दवा लाते नहीं कोई दिले बीमार की ख़ातिर|
सुना है दान वीरों में भी उनका नाम आता है,
मगर वो दान करते है तो बस जयकार की ख़ातिर|
वो मंदिर और मस्जिद में लुटाते लाख पर अफ़सोस,
नही लेकिन दिया कुछ भी कभी लाचार की ख़ातिर|
बनाता मैं भी इक बंगला जो रिश्ते ताक पर रखता,
मगर रहता हूँ कुटिया में तो बस परिवार की ख़ातिर|
बता तू सरफिरा है या कोई मजनूं बना बैठा,
कड़कती धूप में जलता है बस दीदार की ख़ातिर|
चली आती वो दौड़े ख़ुद जो तुमसे प्यार करती तो,
गँवाता जान क्यूँ ‘मिंटू’ तू ऐसे यार की ख़ातिर|
मौलिक व अप्रकाशित
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बनाता मैं भी इक बंगला जो रिश्ते ताक पर रखता,
मगर रहता हूँ कुटिया में तो बस परिवार की ख़ातिर|---वाह्ह्ह्ह वाह
सुन्दर ग़ज़ल कही आ० मिंटू जी हार्दिक बधाई
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