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पैसा:बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’

अरकान – 1222 1222 1222 1222

 

कभी चाहत कभी हसरत कभी श्रृंगार है पैसा 

कभी है फूल तो देखो कभी तलवार है पैसा |

 

जुदा माँ-बाप से कर दे लड़ाए भाई-भाई को,

बहाए खून का दरिया तो फिर बेकार है पैसा|

 

खुदा का शुक्र है घर में बरसती है सदा खुशियाँ, 

कि रहते साथ सब मिलकर मेरा परिवार है पैसा|

 

इसे पाने की खातिर ही जहां में खोया है सब कुछ

मेरे आपस के सम्बन्धों में ये दीवार है पैसा |

 

कलम करता है अपनों का ये रिश्ते ताक पर रखकर,

इसाई-हिन्दू-मुस्लिम तो कभी सरदार है पैसा |

 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on May 7, 2016 at 3:56pm

आदरणीय  श्रीवास्तव  साहेब , समर कबीर साहेब ..............हौसला अफजाई के लिए  बहुत बहुत शुक्रिया !!!!!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 7, 2016 at 10:32am

अच्छी गजल हुयी है , बधाई 

Comment by Samar kabeer on May 6, 2016 at 11:04pm
जनाब मिंटू जी आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।

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