अरकान – 1222 1222 1222 1222
कभी चाहत कभी हसरत कभी श्रृंगार है पैसा
कभी है फूल तो देखो कभी तलवार है पैसा |
जुदा माँ-बाप से कर दे लड़ाए भाई-भाई को,
बहाए खून का दरिया तो फिर बेकार है पैसा|
खुदा का शुक्र है घर में बरसती है सदा खुशियाँ,
कि रहते साथ सब मिलकर मेरा परिवार है पैसा|
इसे पाने की खातिर ही जहां में खोया है सब कुछ
मेरे आपस के सम्बन्धों में ये दीवार है पैसा |
कलम करता है अपनों का ये रिश्ते ताक पर रखकर,
इसाई-हिन्दू-मुस्लिम तो कभी सरदार है पैसा |
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय श्रीवास्तव साहेब , समर कबीर साहेब ..............हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !!!!!
अच्छी गजल हुयी है , बधाई
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