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गीत-आज प्रिये कुछ कहना चाहूँ।

आज प्रिये! कुछ कहना चाहूँ, हिय में तेरे रहना चाहूँ।
तेरे तन-मन में खोया मैं खोया ही अब रहना चाहूँ।।
आज प्रिये! कुछ.........

निज नृग-से न्यारे नयनों में अंजन-सा मुझे रचा लो तुम।
उलझा लो कुंचित-केशों में या गजरा मुझे बना लो तुम।।
अधरों की लाली बन प्यारी मैं अधर-सुधा पा लेना चाहूँ।
आज प्रिये! कुछ............

कानों का कुंडल बन जाऊँ या उर का हार बना लो तुम।
बन जाऊँ छम-छम पायल मैं या कंगन मुझे बना लो तुम।
नथ की नथिया बन सजनी मैं चूम होठ को लेना चाहूँ।
आज प्रिये! कुछ............

बन विस्तृत आँचल तन का मैं यौवन पर तेरे लहराऊँ।
बन सुंदर पुष्पों का अंबर मैं अंग-अंग से लग जाऊँ।।
तन तेरा महकाने को मैं चंदन-केसर बनना चाहूँ।
आज प्रिये! कुछ.............

रातों की नींद सुखद होवे मैं सुंदर सपने बन जाऊँ।
तप्त धूप ना तुझे सताये मैं शीतल छैयाँ ले आऊँ।।
प्यास बुझाने को तेरी मैं शीतल मृदुजल बनना चाहूँ।
आज प्रिये! कुछ...........

रचनाकार-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित


अंजन=काजल
नृग=हिरन

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 12, 2016 at 10:21am

बहुत सुन्दर श्रृंगार रस से आप्लावित  गीत हार्दिक बधाई आ० रामबली जी 

कृपया ध्यान दे...

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